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________________ अनेकान्त 60/1-2 49 कर न तोड़ सकें। अहाते के मध्य समवशरण महावीर स्वामी के 'कैवल्य-ज्ञान' की प्राप्ति के स्वरूप का मन्दिर है। इसमें आध्यात्मिकता के साथ प्रतिमा कला का भी सुन्दर और अनुपमेय संगम है। इसकी प्रतिष्ठा आचार्य देशभूषण जी महाराज के सान्निध्य में सम्पन्न हुई थी। इस मन्दिर में 8 फीट ऊँचा और डेढ़ फीट का संगमरमर का सुन्दर मान स्तम्भ है जिसके शीर्ष पर भगवान महावीर की तपस्या भाव की चर्तुमुखी प्रतिमा है। इसके नीचे महावीर की माता के सोलह स्वप्नों का अनुपम स्वप्न कथा संसार निर्मित है। __ इस मन्दिर के वैभव से अभिभूत हो जब विगत 7 सितम्बर 1983 को राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल ओ.पी. मेहरा यहाँ आये तो उन्होंने इस मन्दिर के बारे में यह लिखा कि- “हमारी इच्छा होती है कि इस पावन स्थल पर हम बार-बार दर्शन हेतु आते रहें।"- ऐसी मनोज्ञ प्रतिमा जिसमें भक्ति और शांति की सरस धारा निरन्तर प्रवाहित होती है. उनके दर्शन सौभाग्य से ही प्राप्त होते हैं और जिन्हें होते हैं उनका जीवन भी धन्य हो जाता है। समवशरण के बाद के अहाते में यात्रियों को ठहरने के दर्जनों सुविधा युक्त हवादार कक्ष बने हुए हैं। इसी अहाते के मध्य यह विचित्र जैन मन्दिर बना हुआ है। इसके चारों कोनों पर चार सुन्दर छत्रियां बनी हुई है। मन्दिर के मुख्य द्वार पर एक चौखुटा व 10 फीट ऊँचा कीर्तिस्तम्भ है इसमें चारों ओर दिगंबर तीर्थकरों की सुन्दर मूर्तियाँ बनी हुई हैं। मध्य में एक ऊँचा अभिलेख है।' इसमें संवत् 1746 की माघ शुक्ला को यहाँ पंचकल्याणक कराने का उल्लेख है। एक लेख में आमेर गादी के भट्टारक स्वामी जगत् कीर्ति का पूरा लेख उत्कीर्ण है। द्वितीय लेख भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति का है। मुख्य द्वार के बाद मन्दिर का अंतःभाग आता है। जो सचमुच में मन्दिर का मूल-भाग प्रतीत होता है। परन्तु ऐसा नहीं है और यह भूल-भुलैया ही इस मन्दिर की विचित्र निर्माण शैली है। मूलतः इस भाग में पंच-वेदियां एवं एक गन्धकुटी बनी हुई है। वेदियों में 24 तीर्थंकरों की मूर्तियाँ
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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