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अनेकान्त 60/1-2
ते नर मध्यका जीव सब, समैं गये पछिता हिं।26 ।। न न्ना नगर न जीव कैं, नहीं जीव के दाभ। तात मात सुत कामिनी, नहीं जीव के धाम ।27।। प पा पर उपगार करि, पर की पीर निहारि। परमारथ पंथ पाव धरि, निज पर लोक सुधार ।28 ।। फ फा फूल्यौ कत फिरे, फीटी संपति पाय। बिना जतन ही आव ही, जतन करती जाय। ब ब्बा वैरी जीव के, विषै समान न कोइ। अजस सुजस इह भव प्रगट, आर्गे दुरगति होइ ।30 ।। भ भा भूल्यौ भरम मैं, भरम्यौ तू चित काल। भीज्यो रस कामिनि कनक, भजो न दीनदयाल ।31 ।। म म्मां मान सुमति करै, मान सुमति कौ नांस। मान मूल दुख दुरम कौ, मांन कुमति को बास । य या जिय के जीव सम, हितु न दूजौ कोइ। या तैं पर सौं प्रीति तज, आय आय कौं जोइ ।33 ।। र रा रंक राजा कहा, दोऊ एक निदानि। षांन पहरनै भेद पै, काल गाल मैं जांनि ।34 ।। लल्ला लोभ निवारिये, लोभ अजस कौ कंद । लोभ सजस धन पवन है, लोभ कुगति कौ फंद।35 ।। वा वा वा मेरी बसत, वा कीनी वा नाहि। वा करिहौं करिहौं नवा, वादि वह्यो जग मांहि ।36 ।। स स्सा समिकित बाहरौ, मिथ्या जप तप दांन। सांच बिना न मंत्र फुरै, कोटि करै जो आन।37।। हा हा हासी जिनि करौ, करि करि हासी आन। हीरौ जनम न हार तू, विनां भजन भगवांन ।38 ।। निज कारन उपदेस मैं, कीयो बुधि अनुसारि । कवि जन दुख न जिनि धरौ, लीज्यौ अबै सुधारि ।39 ।।