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________________ अनेकान्त 60/4 51 और ताप नहीं होता। जब सूर्य का प्रकाश होता है, तब बीमारियां उग्र नहीं होती। आचार्य रविषेण ने तो लिखा है मांस मद्यं निशामुक्ति स्तेयमन्यस्य योषितम्। सेवते यो जनस्तेन भवे जन्मद्वयं हृतम् ।।पद्मचरित 277 जो मनुष्य मांस, मद्य, रात्रिभोजन, चोरी और परस्त्री का सेवन करता है वह अपने इस जन्म और परजन्म को नष्ट करता है। जैनेतर ग्रंथों में रात्रि भोजन विरति के संदर्भ महाभारत में नरक के चार द्वारों में रात्रि भोजन को प्रथम द्वार बताते हए यधिष्ठिर से रात्रि में जल भी न पीने की बात कहते हुए कहा गया है नरकद्वाराणि चत्वारि प्रथमं रात्रिभोजनम्। परस्त्रीगमनं चैव सन्धानान्तकायिके।। ये रात्रौ सर्वदाहारं वर्जयन्ति सुमेधसः। तेषां पक्षोपवासस्य फलं मासेन जायते।। नोदकमपि पातव्यं रात्रावत्र युधिष्ठिर। तपस्विनां विशेषेण गृहिणां च विवेकिना।। महाभारत अर्थात् रात्रि भोजन करना, परस्त्री गमन करना, अचार, मुरब्बा आदि का सेवन करना तथा कंदमूल आदि अनंतकाय पदार्थ खाना ये चार नरक के द्वार हैं। उनमें पहला रात्रि भोजन करना है। जो रात्रि में सदा सब प्रकार के आहार का त्याग कर देते हैं उन्हें एक माह में एक पक्ष के उपवास का फल मिलता है। हे युधिष्ठिर! रात्रि में तो जल भी नहीं पीना चाहिए, विशेषकर तपस्वियों को एवं ज्ञान सम्पन्न गृहस्थ को तो रात्रि में जल भी नहीं पानी चाहिए। जो लोग मद्य और मांस का सेवन करते हैं, रात्रि में भोजन करते हैं तथा कंदमूल खाते हैं उनके द्वारा की गयी तीर्थयात्रा तथा जप और तप सब व्यर्थ हैं।
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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