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अनेकान्त 60/4
हिंसा और राग को बढाने वाली दूषित कथाओं का सुनना और उनकी शिक्षा देना अशुभश्रुति अनर्थदण्ड है।30 पं० आशाधर के अनुसार जिन शास्त्रों में काम, हिंसा आदि का वर्णन है, उनके सुनने से हृदय राग-द्वेष से फलुषित हो जाता है। अतः ऐसे शास्त्रों के श्रवण को दुःश्रुति कहते हैं।31 प्रमादचर्या को प्रमादाचरित नाम से उल्लिखित करते हए आचार्य पूज्यपाद ने विना प्रयोजन वृक्षादि के छेदने, भूमि को कूटने, पानी को सींचने आदि पाप कार्यों को प्रमादाचरित अनर्थदण्ड कहा है।2 अन्य आचार्यों का भी यही दृष्टिकोण है। अनर्थदण्डव्रत के अतिचार
अनर्थदण्डव्रत के पाँच आतिचार हैं कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और उपभोगपरिभोगानर्थक्य ।33 हास्ययुक्त अशिष्ट वचनों के प्रयोग को कन्दर्प, शारीरिक कुचेष्टायुक्त अशिष्ट वचनों के प्रयोग को कौत्कुच्य, निष्प्रयोजन बकवाद को मौखर्य, निष्प्रयोजन तोड़फोड़ या अधिक कार्य करने को असमीक्ष्याधिकरण तथा निपप्रयोजन भोगसामग्री के संचय को उपभोगपरिभोगानर्थक्य कहते
हैं।
पं० आशाधर जी ने कन्दर्प एवं कौत्कुच्य को प्रमादचर्या नामक अनर्थदण्डव्रत का, मौखर्य को पापोपदेश नामक अनर्थदण्डव्रत का, असमीक्ष्याधिकरण को हिंसादान नामक अनर्थदण्डव्रत का तथा उपभोगपरिभोगानर्थक्य को भी प्रमादचर्या नामक अनर्थदण्डव्रत का अतिचार माना है। ऐसा प्रतीत होता है कि अपध्यान एवं दुःश्रुति नामक अनर्थदण्डव्रतों का कोई अतिचार इन पाँच अतिचारों में सम्मिलित नही है। इस पर विचार अपेक्षित है।
अनर्थदण्डव्रत का प्रयोजन एवं महत्त्व
अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है कि जो व्यक्ति अनर्थदण्डों को जानकर