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________________ अनेकान्त 60/4 विहार होने से मूलगुणों एवं चारित्र के पालन में शिथिलाचारी हैं उनके एकल विहार को आगम आज्ञा नहीं है। संघ के आचार्यों को एवं विद्वत् जनों को उस पर अवश्य रोक लगानी चाहिए। इसी प्रकार जिन आचार्यों, साधुओं, क्षुल्लकों आदि ने अनियत विहार का परित्याग करके एक स्थान पर अपना तीर्थ आदि निवास बनाकर रहना अथवा अधिकांश रहना प्रारम्भ कर दिया है, जिनकी आज्ञा बिना उन क्षेत्रों पर कुछ भी नहीं हो सकता, जो इन क्षेत्रों से जुड़ गये हैं अथवा जिनका विहार या आहार बहुत दिन पहले ही नियत हो जाते है। अखबारों में पूर्व ही जिसकी घोषणा हो जाती है, उनके विहार को अनियत विहार की संज्ञा नहीं दी जा सकती। यह भी महान् शिथिलाचार है। इस पर भी आगम के परिप्रेक्ष्य में यथाशीघ्र रोक लगानी चाहिए। यद्यपि पंचम काल के इस समय में जबकि साधुओं में शिथिलाचार दावानल के समान वृद्धि को प्राप्त हो रहा है, उपर्युक्त आगम विरुद्ध चर्याओं का रुकना असम्भव सा प्रतीत होता है। फिर भी विज्ञ जनों को इस दिशा में विवेकपूर्ण कदम उठाना अत्यन्त आवश्यक है। 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, हरिपर्वत आगरा
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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