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________________ अनेकान्त 60/4 ___अर्थ सिंह के समान नरसिंह महामुनि पर्वत के तट, कटक, (पर्वत के ऊर्ध्वभाग के समीप का स्थान), कन्दराओं और गुफाओं में जिनवचनों का अनुचिन्तन करते हुए उत्साह चित्त होकर निवास करते हैं। सज्झायझाणजुत्ता रत्तिं ण सुवति ते पयाम तु। सुत्तत्यं चिंतंता णिद्याय वसं ण गच्छति।। 796 ।। अर्थ स्वाध्याय और ध्यान में तत्पर हुए वे मुनि प्रथम व अन्तिम पहर में रात्रि में नहीं सोते हैं। वे सूत्र और अर्थ का चिन्तवन करते हुए निद्रा के वश में नहीं होते हैं।। 796 ।। उपर्युक्त प्रकार अनियत विहार करने वाले साधुओं के क्या गुण प्रकट होते हैं उसका वर्णन श्री भगवती आराधना में बहुत सुन्दर किया गया है, जो इस प्रकार है : दसणसोधी ठिदिकरण भावणा अदिसयत्तकुसलत्तं। खेत्तपरिमग्गणावि य अणियदवासे गुणा होति।। 144।। अर्थ दर्शनशुद्धि, स्थितिकरण, भावना, अतिशय अर्थों में निपुणता और क्षेत्र का अन्वेषण ये अनियत स्थान में बसने में गुण होते हैं।। 144 ।। श्री आचारसार में अधिकार 10 की गाथा 6 में भी इसी प्रकार वर्णन किया गया है। भावार्थ - अनियत विहार करने वाले मुनियों में निम्न गुण प्रकट होते हैं : 1. दर्शन शुद्धि तीर्थकरों के जन्म स्थान, दीक्षा स्थान, केवलज्ञान की उत्पत्ति स्थान, मानस्तम्भ आदि एवं निषीधिका स्थान देखने वाले के सम्यग्दर्शन में निर्मलता होती है। 2. स्थितिकरण अनियत विहारी साधु सम्यक्चारित्र, सम्यक्तप और शुद्ध लेश्या में वर्तमान होता है, उसे देखकर अन्य सभी महामुनिराज संसार से अत्यन्त भीत होते हैं, वे मानते हैं कि ये
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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