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अनेकान्त 60/3
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तथ्य की पुष्टि करते है । ऋषभ पुत्र बाहुबली की प्राचीन राजधानी पोदनपुर ( तक्षशिला ) पेशावर (पाकिस्तान) में हैं। वहां एक जिन मृति की प्रतिच्छवि में श्रावकों को जिन मूर्ति पर जलाभिषेक करते हुए देखा जा सकता है श्रावकों ने बिना सिली हुई धोती पहिन रखी है और अग पर अन्य कोई वस्त्र नहीं है । यह मूर्ति दूसरी शती पूर्व की है और इसकी प्राचीनता के आधार पर भारत या बाहर देशों में जिन पूजा के अंतर्गत किये जाने वाले जलाभिषेक की प्राचीनता सिद्ध की जा सकती है।
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उक्त आलेख को जब से पढ़ा मन मे यह भावना रही कि पचामृत अभिषेक की आगमिक परम्परा की जानकारी प्राप्त की जाये । पुण्य योग से मुनि श्री भूतवली सागर जी द्वारा संकलित सम्यक् श्रामण्य भावना मिली । इस कृति के पृष्ठ 187-202 में श्रावकाचार संग्रह (तीन भाग ) के आधार पर पंचामृत या जलाभिषेक का आगमिक विवरण एवं समीक्षा प्रस्तुत की गयी है । अन्वेषण कर्त्ताओं को यह जानकारी उपयोगी सिद्ध होगी । अतः सहज भाव से सम्यक् निर्णय हेतु प्रस्तुत है । विद्वज्जन निष्पक्ष भाव से विचार करें ।
1. ईसा की दूसरी शती में आचार्य उमास्वामी के शिष्य आचार्य समन्तभद्र हुए। आप महाकवि एव महावादि थे। आपने रत्नकरण्ड श्रावकाचार की रचना की। आपने शिक्षाव्रत अधिकार में वैयावृत्य के अतर्गत श्लोक 119 में जिनेन्द्र पूजन का उपदेश दिया। इसमें अभिषेक का वर्णन नहीं किया।
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2. विक्रम की पांचवीं शती में श्वेताम्वराचार्य विमलसूरी हुए आपने प्राकृत भाषा में 'पदम चरिय' ग्रन्थ की रचना की। इसके उद्देश्य 32 में आपने गाथा 178 से 182 में पंचामृत अभिषेक द्वारा स्वर्ग में उत्तम देव और विमान प्राप्त करने की लौकिक भावना भायी है ।
3. ईसा की सातवीं शती में रविषेण (ई. 643-683) दिगम्वराचार्य हुए। आपने विमलसूरि के पउमचरिय का संस्कृत रूपांतरण जैसा करते हुए पद्यपुराण की रचना की। दोनों की उद्देश्य पर्व सख्या समान है !