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________________ 50 अनेकान्त 60/3 उजुकूलणदी तीरे जंभिय गामे बहिं सिला वट्टे। छट्टैणादा वेतो अवरहे पाय छायाए।। वह साह जोण्ण पक्खे दसमीह खवगसेडिमा रूढो। हंतूण घाइकम्मं केवल माणं समा वण्णो।। जय धवला पुस्तक 1 पृष्ठ 72 अर्थात्- जृम्भिका ग्राम के बाहर ऋजुकूला नदी के किनारे शिलापट्ट के ऊपर पष्टोपवास के साथ आतापन योग करते हुए महावीर भगवान ने अपराह्न काल में पाद प्रमाण छाया के रहते हुए वैशाख शुक्ल दशमी के दिन क्षपक श्रेणी पर आरोहण किया और चार घातिया कर्मों का नाश करके केवलज्ञान प्राप्त किया। केवलज्ञान प्राप्त होते ही महावीर स्वामी का शरीर पाँच हजार धनुष ऊपर उठ गया। सौधर्म इन्द्र का आसन कंपित हो गया, उसने केवलज्ञान उत्पत्ति जानकर परोक्ष नमन किया। ज्ञानकल्याणक मनाया गया देव और मनुष्यों ने केवलज्ञानी भगवान महावीर की पूजा की और सौधर्म इन्द्र ने कुबेर को आदेश दिया कि विशाल सभा मण्डप समवशरण की रचना करो। इन्द्र की भावना थी कि संसार के समस्त दुःखी प्राणी सुख का मार्ग प्राप्त करें। इस उद्देश्य से ऋजुकूला नदी के किनारे अविलम्ब समवशरण की रचना की गई कुबेर हर्षित था, उसे अपना वैभव अकिंचन लग रहा था। उपदेश ग्रहण करने का उत्साह लेकर समवशरण में देव, मनुष्य एवं तिथंच पहुँच रहे थे। विशाल जन समूह एकत्र हो रहा था। सौधर्म भी अपने पूरे परिकर के साथ पहुँच गया था। नियमानुसार सभी अपने अपने कक्ष/सभा में यथास्थान बैठ गये। केवलज्ञान वैसाख शुक्ल दशमी को हुआ था और आषाढ़ मास व्यतीत होने जा रहा था। किन्तु अभी तक महावीर स्वामी की देशना प्रारंभ नहीं हुई थी। सभी देवगण, विद्वत जन एवं अन्य विचार शील व्यक्ति देशना अवरोध के संबंध में विचार कर रहे थे। ये मूक केवली नहीं हैं, इनकी देशना होगी लेकिन कब होगी, समय निकलता जाता है। कई लोग कह रहे थे अभी काल लब्धि नहीं आयी है। इन दिनों में कई लोग आये कई लोग लौट गये और कई
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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