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भगवान महावीर का देशना स्थल एवं गणधर
- पं. सनतकुमार विनोदकुमार जैन रजवॉस कर्मों पर विजय प्राप्त करने के लिये क्रमश. एक एक सोपान चढ़ते हुये, भगवान महावीर ने वारहवें गुणस्थान में चौदह प्रकृतियों का नाश कर, अन्तःकरण में केवलज्ञान रूपी सूर्य के आलोक को प्राप्त किया। कैवल्य प्राप्त करते ही भगवान सर्वज्ञ हो गये, जगत् पूज्य हो गई वह तिथि और वह स्थान, वह दिन और वह जृम्भिका ग्राम, ऋजुकूला नदी का किनारा और वह शालवृक्ष। इन्हें सब वन्दन करते हैं, इनके विषय में पूर्वाचार्यों के भी मत दृष्टव्य हैं .. वइसाह सुक्क दसमी हत्ते रिक्खम्मिवीरणाहस्स। रिजुकूलणदी तीरे अवरण्हे केवलं णाणं । 14/709 ।। तिलोयपण्णत्ति
अर्थात्- वीर नाथ जिनेन्द्र को वैसाख शुक्ल दशमी के अपराह्न में हस्त नक्षत्र के रहते ऋजुकूला नदी के किनारे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। ऋजुकूला नदी के साथ जृम्भिका ग्राम का उल्लेख प्राप्त होता है। जिससे कंवलज्ञान उत्पत्ति के स्थान का निर्णय शीघ्रता से हो जाता है। विहरन्नथ नाथोऽसौ गुण ग्राम परिग्रहः ऋजुकूलापगाहे जृम्भिकग्राममिथिवान।। तत्रातापन योगस्थ सालाभ्याशशिलातले वैसाख शुक्ल पक्षस्य दशम्यां षष्ठमाश्रितः।। हरिवंश पुराण सर्ग 2, 57, 58 ___ अर्थात्- गुण समूह रूपी परिग्रह को धारण करने वाले श्री वर्धमान स्वामी विहार करते हुये ऋजुकूला नदी के तट पर स्थित जृम्भिका ग्राम पहुँचे। वहाँ वैसाख शुक्ला दशमी के दिन दो उपवास का नियम लेकर वे शालवृक्ष के नीचे शिला तल पर आरूढ़ हो गये। कंवलज्ञान प्राप्ति के स्थानादि के उल्लेख के साथ अपराह्न का उल्लेख है, किन्तु अपगह काल में भी कितना समय था इसे भी निर्देशित किया है।