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________________ अनेकान्त 60 / 1-2 तदनन्तर भगवान ने अपने उरुओं से यात्रा दिखलाकर अर्थात् परदेश जाना सिखलाकर वैश्यों की रचना की । सो ठीक ही है, क्योंकि जल, स्थल आदि प्रदेशों में यात्रा कर व्यापार करना ही उसकी मुख्य आजीविका है। हमेशा नीच ( दैन्य) वृत्ति में तत्पर रहने वाले शूद्रों की रचना वृषभदेव ने पैरों से की थी। क्योंकि क्षत्रिय और वैश्य इन उत्तम वर्णों की सेवा, सुश्रूषा आदि करना ही उसकी मुख्य आजीविका है। इस प्रकार तीन वर्णों की सृष्टि तो स्वयं भगवान वृषभदेव ने की थी । 15 वर्णों की व्यवस्था तब तक सुरक्षित नहीं रह सकती जब तक कि विवाह सम्बन्धी व्यवस्था न की जाये इसलिए भगवान वृषभदेव ने विवाह व्यवस्था इस प्रकार बनायी थी कि शूद्र शूद्र कन्या के साथ ही विवाह करे वह ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य की कन्या के साथ विवाह नहीं कर सकता। वैश्य वैश्यकन्या तथा शूद्र कन्या के साथ विवाह करे तथा ब्राह्मण ब्राह्मण कन्या के ही साथ विवाह करे परन्तु कभी किसी देश में वह क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कन्याओं के साथ विवाह कर सकता है। उस समय भगवान ने यह भी नियम प्रचलित किया था कि जो कोई अपने वर्ण की निश्चित आजीविका छोड़कर दूसरे वर्ण की आजीविका करेगा, वह राजा के द्वारा दण्डित किया जायेगा क्योंकि ऐसा न करने से वर्णसंकीर्णता हो जायेगी अर्थात् सब वर्ण एक हो जायेंगे उनका विभाग नहीं हो सकेगा । भगवान आदिनाथ ने विवाह, आदि की व्यवस्था करने के पहले ही असि, मषि, कृषि, सेवा, शिल्प और वाणिज्य इन षट्कर्मों की व्यवस्था करा दी थी इसलिए उक्त छह कर्मों की व्यवस्था होने से यह कर्मभूमि कहलाने लगी थी । इस प्रकार ब्रह्मा आदिनाथ ने प्रजा का विभाग कर उनके योग (नवीन वस्तु की प्राप्ति) और क्षेम ( प्राप्त हुई वस्तु की रक्षा) की व्यवस्था की थी । ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति- ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति के सम्बन्ध में आचार्य जिनसेन ने लिखा है कि भरत चक्रवर्ती अनेक राजाओं के साथ
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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