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________________ अनेकान्त 60/3 स्वामी कार्तिकेयानप्रेक्षा में लिखा है सप्तमी और त्रयोदशी के दिन अपराह्न में जिन मंदिर में जाकर सामायिक करके चारों प्रकार के आहार त्याग करके उपवास का नियम कर ले और घर का सब काम-धाम छोड़कर रात्रि को धर्म चिन्तन पूर्वक बितावे। सुबह उठकर क्रिया कर्म करके शास्त्र स्वाध्याय करते हए अष्टमी या चतुर्दशी का दिन बितावे। फिर सामायिक करके उसी तरह से रात्रि को वितावे। प्रातः उठकर सामायिक करे फिर पूजन करे अनन्तर आहार दान करके, स्वयं भोजन करे ।।6 प्रोषधोपवास के काल में चारों प्रकार का आहार, स्नान, तेल उबटन, गन्ध, पुष्प, विशिष्ट वस्त्राभरण और सावध आरम्भ सर्वात्मना छोड़ देता है। ब्रह्मचर्य धारण करता है, शरीर आदि से ममत्व नहीं रखता। परिणामतः वह समीपवर्ती लोगों को भी ऐसे मुनि की तरह लगता है, जिस पर किसी ने वस्त्र डाल दिया है। वह अशुभ कर्म की निर्जरा के लिए मुनि की तरह पर्व की रात बिताता हैं और किसी भी परिपह अथवा उपसर्ग द्वारा समाधि से च्युत नहीं होता है। ___ प्रोषधोपवास व्रत एवं चतुर्थ प्रतिमा में अंतर सामायिक व्रत एवं तृतीय प्रतिमा के समान यहाँ भी जानना चाहिए। व्रत प्रतिमा पालन के समय में वे अणुव्रतों की रक्षा के लिए होते हैं परन्तु तृतीय एवं चतुर्थ प्रतिमा में निरतिचार अवश्य करणीय होते हैं। 5. सचित्त त्याग प्रतिमा पूर्वोक्त चार प्रतिमा का निर्वाह करने वाला जो दया मूर्ति श्रावक अप्रासुक अर्थात् अग्नि में न पकाये हुए हरित अंकुर, हरित वीज, जल, नमक आदि को नहीं खाता, उसे शास्त्रकारों ने सचित्त विरत श्रावक माना है। चित्त अर्थात् जीव, जीव से सहित को सचित्त कहते है। आगम में हरित वनस्पति में अनन्त निगोदिया जीवो का वास कहा है। प्रत्येक
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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