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________________ 16 अनेकान्त 60/3 6. आवश्यकता हीनता का विचार ____ मानव की आवश्यकतायें आकाश की तरह असीम और सागर की लहरों की तरह अनन्त होती हैं, जिन्हें अपने सीमित साधनों से कभी भी पूरा या सन्तुष्ट नहीं कर सकता, न्यायोपार्जित द्रव्य से इच्छापूर्ति करना चाहिए"। आवश्यकता-विहीनता की स्थिति प्राप्त करने के लिए मूलतः दो उपायों का विवेचन किया गया है- 1. निवृत्तिमूलक - जिसमें समस्त आवश्यकताओं एवं पदार्थों से मोह-ममत्व को त्यागकर वनवास स्वीकार कर आत्मस्वरूप मे रमण किया जाता है। तथा 2. प्रवृत्तिमूलक - जिसमें अहिंसा आदि अणु-चारित्र का परिपालन कर क्रमशः आवश्यकता हीनता की अवस्था की प्राप्ति की ओर बढ़ता जाता है। इसमें ग्यारह सोपानों की मुख्यता है। 7. ब्रह्मचर्य का विचार असंयम या भोगाधिक्य से मन व इन्द्रियों को वश में रखने की शक्ति घटती है, सस्ती आती है, जीवन की सम्पूर्ण क्रियाओं को मन्द अव्यवस्थित रखती है एवं विविध रोगों की उत्पत्ति होती है, जो कार्य-अक्षमता को जन्म देती है। परिणामस्वरूप सामाजिक उत्पादकता और राष्ट्रीय कुल उत्पादन में कमी आती है। दूसरी ओर असंयम से जनसख्या तेजी से बढ़ती है जिनके भरण-पोषण पर सरकार को भारी व्यय करना पड़ता है, फलतः राष्ट्रीय विकासात्मक कार्यक्रमों के लिए पूंजी बहुत कम उपलब्ध हो पाती है। इन सबके समाधान के लिए संयम या ब्रह्मचर्य को धारण करना चाहिए। यह संयम न केवल सामाजिक - राष्ट्रीय समृद्धि अपितु आत्मिक समृद्धि भी लाती है। 8. आर्थिक शोषण से मुक्ति का विचार आर्थिक शोषण से मुक्ति हेतु अपरिग्रह का विचार दिया गया है। यह अपरिग्रहवाद व्यक्ति की अनावश्यक संचयवृत्ति को नियंत्रित कर अर्थात् शोषण की समाप्ति तथा समत्व की स्थापना करता है। अपरिग्रह
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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