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________________ अध्यात्म-पद 7082 "हम तो कबहुँ न निजगुन भाये" हम तो कबहुँ न निजगुन भाये।'' तन निज मान जान तन सुख-दुख में विलखे हरषाये।। तन को गरन मरन लखि, तन को, धरन मान हम जाये। या भ्रमभौंर परे भवजल चिर, चहुँगति विपति लहाये।। हम तो कबहुँ.................. ||1|| दरश-बोध-व्रत-सुधा न चाख्यो, विविध विषय-विष खाये। सुगुरु दयाल सीख दई पुनि-पुनि, सुनि-सुनि उर नहिं लाये ।। हम तो कबहूँ..................।।2।। बहिरातमता तजी न अन्तर दृष्टि न वै जिन ध्याये । धाम काम धन रामा की नित, आस-हुतास जलाये ।। हम तो कबहूँ. ............... || ।। अचल अरूप शुद्ध चिद्रूपी, सब सुखमय मुनि गाये । "दौल" चिदानन्द स्वगुण-मगन जे, ते जिय सुखिया थाये ।। हम तो कबहूँ. ................. ।।4।। - कविवर दौलतराम जी
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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