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सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण
-पं. सनत कुमार, विनोद कुमार जैन दर्शन में जहाँ जीवन को संयमित/संतुलित बनाने का निर्देश है, वहाँ मरण को भी सुव्यवस्थित करने की आज्ञा दी गई है। सुखमय भविष्य के लिये जीवन को जितना सुसंस्कारित करना आवश्यक है उतना ही मरण को व्यवस्थित करना आवश्यक होता है। जब हम अपने जीवन को अनंत भव धारण करने पर भी सुखी नहीं बना पाये। तब हमने मरण को कैसे सफल बना पाया होगा? यदि एक बार मरण समाधिपूर्वक हो जाये तो हमारा जीवन सुखमय हो जावेगा। एक मरण को सुव्यवस्थित करने के लिये हमें जीवन भर मरने की तैयारी करनी पड़ती। तब हम सफल समाधि मरण कर सकेंगे। आचार्यों ने बारह व्रतों के पालन करने के उपरान्त मरण के समय प्रीतिपूर्वक सल्लेखना व्रत ग्रहण करने को कहा है। तत्त्वार्थ सूत्र में बारह व्रतों के स्वरूप, भावना, और अतिचारों के साथ सल्लेखना व्रत का भी वर्णन किया है। सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण करने के लिये जीवन भर बारह व्रतों का पालन किया जाता है। अनंतों बार मरण करने पर भी मरण नहीं छूटा, यदि एक बार समाधिपूर्वक मरण हो जाये तो मरण छूटना निश्चित हो जायेगा। सल्लेखना में शरीर और कषाय को कुश करने का निर्देश किया है।
'सम्यक्कायकषायलेखना सल्लेखना भली प्रकार से काय और कषाय का लेखन करना सल्लेखना है।
लिखेय॑न्तस्य लेखना तनुकरणमिति यावत् ।। लिख धातु में णि प्रत्यय करने से लेखना शब्द बनता है उसका अर्थ तनु करण अर्थात् कृश करना है।