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अनेकान्त 59/1-2 दूध बनने की प्रक्रिया में माइकल वैरी ऑक्स ने जो विचार दिया है वह उनका अपना हो सकता है, परंतु सत्य बात तो यह है कि दूध बने या न बने, परन्तु समस्त प्राणियों के शरीर में रक्त प्रवाह होता ही रहता है। यदि प्रवाह रुक जाये तो प्राणियों का जीवन ही समाप्त हो जायेगा। मनुष्य के शरीर में हृदय द्वारा एक घंटे में लगभग 2 टन खून पंप किया जाता है, जो अंदर की रक्त नलिकाओं से प्रवाहित होकर बाहरी रक्त नलिकाओं से होकर हृदय तक पहुंचता है। वे बारीक रक्त नलिकाएं स्तनधारी प्राणियों की दुग्ध ग्रंथियों से होकर गुजरती है और लेक्टेटिंग हार्मोन्स से दूध का निर्माण होता है जो रस के रूप में दुग्ध ग्रंथि में संग्रहीत हो जाता है। __अत: दूध का निर्माण रक्त से नहीं होता बल्कि स्तनधारी प्राणियों के गर्भ धारण करने के उपरांत शाकाहारी की श्रेणी में आने वाले लेक्टेटिंग हार्मोन्स से होता है। वे हार्मोन्स रक्त से पूर्णतः अलग गुण धर्म वाले होते है। उनका एक निश्चित समयावधि में उत्पन्न होना प्रारम्भ होता है। उन्हीं की उपस्थिति में दूध का निर्माण और निकलना (सिक्क्रियेशन) होता है, न कि रक्त से। यदि रक्त से होता तो हमेशा ही सभी प्राणियो के होते रहना चाहिये, जबकि ऐसा नहीं होता। इसीलिए दूध रक्त मांस से अलग शुद्ध रस है।
चिकित्सा शास्त्र में दुग्ध निर्माण :
आयुर्वेदिक आदि चिकित्सा शास्त्रों में लिखा है कि मनुष्य तिर्यचादि प्राणी जो आहार ग्रहण करते है वह सबसे पहले रस और खल (मलमूत्र) में परिवर्तित होता है फिर रस से रक्त, मांस से मेद, मेद से अस्थि, अस्थि से मज्जा और मज्जा से शुक्र, क्रमशः इन सप्त धातुओं की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार आहार से सर्वप्रथम रस बनता है और उस रस धातु से स्तन्य (दुग्ध) रूप, उपधातु की उत्पत्ति होती है इसलिए ग्रहण किये गये भोज्य पदार्थों की गंध दूध में आती है रक्त में नहीं। यदि रक्त से दूध बनता तो उसमें गंध नहीं आना चाहिए।