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________________ 114 अनेकान्त 59/3-4 पण्डित प्रवर आशाधर ने ब्रह्मचर्य के दस नियमों का उल्लेख किया 1. रूप, रस, गंध, स्पर्श, और शब्द के रस का पान करने की लालसा ब्रह्मचारी में नहीं हो। 2. वह इस प्रकार के कार्य न करे जिससे लिंग में विकार होने की संभावना हो। 3. ब्रह्मचारी कामोद्दीपक आहार न ग्रहण करे। 4. महिलाओं द्वारा उपभोग किये हुए शयन, आसन आदि का उपयोग न करे। 5. स्त्री के गुप्ताङ्ग पर दृष्टि न डाले। 6. अनुरागवश स्त्री का सत्कार न करे। 7. शरीर का संस्कार न करे। 8. पूर्व सेवित रति का स्मरण न करे। 9. आगामी भोग की इच्छा न करे। 10. इष्ट रूपादि में मन को संयुक्त न करे। भर्तृहरि लिखते हैंमत्तेभकुम्मदलने भुवि सन्ति शूराः केचित्प्रचण्डमृगराजवधेऽपि दक्षाः। किन्तु ब्रमीमि बलिनां पुरतः प्रसह्य कन्दर्पदपलने विरला मनुष्याः॥ - श्रृंगारशतक 58 इस पृथ्वी पर मदोन्मत्त गजराज का कुम्भस्थल दलन करने वाले बहुत से शूरवीर विद्यमान है और ऐसे ही प्रचण्ड मृगराज सिंह का बध करने वाले मनुष्य भी बहुत मिल सकते है, परन्तु बलवानों के समक्ष हम वह बात जोर देकर कह सकते है कि कामदेव का गर्वभंजन करने वाले बिरले ही मनुष्य होंगे। प्रशमरति प्रकरण में लिखा है
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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