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________________ अनेकान्त 59/3-4 111 आचार्य सोमदेवसूरि लिखते हैंविषवद्विषयाः पुसामापाते मधुरागमाः। अन्ते विपत्तिफलदास्तत्सतामिह को ग्रहः। देहद्रविणसंस्कारसमुपार्जनवृत्तयः। जितकाये वृथा सस्तित्कामः सर्वदोषभाक् ।। - उपासकाध्ययन 410, 415 विष के समान विषय प्रारम्भ में मीठे लगते है किन्तु अन्त में विपत्ति में डालते है अतः विषयों में सज्जनों का आग्रह कैसा। जिसने काम को जीत लिया उसका शरीर संस्कार, धनोपार्जन आदि व्यर्थ है- क्योंकि इन सबकी जड़ स्त्री संभोग दुःख का कारण है- योग शास्त्र में वर्णन है स्त्री संभोगेन यः कामज्वरं प्रतिचिकीर्षति। स हुताशं धृताहुत्या विध्यापयितुमिच्छति।। 2/81 जो स्त्री-संभोग के द्वारा कामज्वर को रोकना चाहता है वह घी की आहुति से अग्नि को शान्त करना चाहता है। पंडित आशाधर जी ने भी कहा है सन्तापरूपो मोहाङ्गसादतृष्णानुबन्धकृत् । स्त्रीसम्भोगस्तथाप्येष सुखे चेत्का ज्वरेऽक्षमा।। - सागार धर्मामृत 53 स्त्री संभोग और ज्वर दोनों समान हैं। स्त्री संभोग से पित्त कुपित हो जाता है वह सन्ताप पैदा करता है और ज्वर तो सन्तापकारी होता ही है। उसमें समस्त शरीर तपता है। हित, अहित का ज्ञान न रहने को मोह कहते है कामी को जब काम सताता है तो उसे हित अहित की बात समझमें नहीं आती। ज्वर में भी ऐसी दशा होती है। संभोग भी शरीर की सहनशीलता को नष्ट करता है और ज्वर भी। स्त्री सम्भोग से तष्णा बढती है। और ज्वर से भी तृष्णा अर्थात् प्यास बढती है। आयुर्वेद मे कहा है स्त्रीसम्भोग से पित्त प्रकपित हो जाता है। जिनसेन आचार्य ने लिखा है
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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