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________________ 80 अनेकान्त 59/3-4 हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः।' (3) सर्वार्थसिद्धि, 3/37 -तत्त्वार्थसूत्र, 3/10-11 (4) भगवती आराधना, 780 की विजयोदया टीका (5) तिलोयपण्णत्ती, 4/345-358 (6) महापुराण, 9/37-39 (7) भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकुरुम्यः।' -तत्त्वार्थसूत्र, 3/27 (8) 'भरतैरावतयोवृद्धिह्रासौ षट्समयाभ्यामुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभ्याम्। -वही, 3/27. (9) द्र.- तिलोयपण्णती, 4/324-396. (10) द्र.- वही, 4/400-405. (11) द्र.- वही, 4/407-413. (12) द्र.- वही, 4/416–427. (13) रत्नत्रय त्रिलोक रत्नाकर, पृष्ठ 338-342. (गणिनी आर्थिका विशुद्धमती) (14) 'छब्बीसदुरेसकसय पमाणभोगक्खिदीण सुहमेक्कं । कम्मखिदीसु पराणं हवेदि सोक्खं च दुक्खं च ॥ - तिलोयपण्णत्ती, 4/2999. (15) 'भोगभूमावुत्पन्नानां तदुपादानानुपत्ते । धवला, I. I. I (16) तिलोयपण्णत्ती, 4/386 (17) 'भोगभूमिषु यद्यपि मनुष्याणां ज्ञानदर्शने स्तः, चारित्र तु नास्ति, अविरतभोगपरिणामित्वात्।' -तत्त्वार्थराजवार्तिक, 3/37 (18) जैनेन्द्रसिद्धान्तकोष, 2/236 पृ. -उपाचार्य एवं अध्यक्ष-संस्कृत विभाग एस.डी. (पी.जी.) कालेज, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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