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अनेकान्त 59/3-4
मनुष्यायु बाँधकर तीर्थकर के पादमूल में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त सम्यग्दृष्टि भी उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हो जाते हैं। पात्र को दान देकर या दानी की अनुमोदना करने वाले तिर्यच भी भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। कुलिंगसेवी या कुलिंगी भोगभूमि में तिर्यच होते हैं। भोगभूमि के मनुष्य एवं तिर्यचों में नौ माह आयु शेष रहने पर ही गर्भधारण होता है। गर्भ से युगल पैदा होते ही तत्काल नर-नारी का मरण हो जाता है। भोगभूमिज मिथ्यावादी मनुष्य एवं तिर्यच भवनत्रिक में तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्य एवं तिर्यच सौधर्म-ऐशान स्वर्ग पर्यन्त उत्पन्न होते हैं। भोगभूमि में उत्पन्न बालक शय्या पर अंगूठा चूसने, बैठने, अस्थिर गमन, स्थिर गमन, गुणप्राप्ति, तारुण्यप्राप्ति एवं सम्यक्त्वग्रहण की योग्यता में कमशः तीन-तीन दिन लगाते हैं। भोगभूमिज नर-नारी का शरीर धातुमय होता है, फिर भी छिन्न-भिन्न नहीं हो सकता है। उनके शरीर में मल-मूत्र का आम्रव नही होता है। भोगभूमि में व्याघ्रादिक भी कल्पवृक्षों के मधुर फल ही भोगते हैं।
मध्यम भोगभूमि की अवस्थिति
मध्यम भोगभूमि (सुषमा काल) में मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई चार सौ धनुष, आयु दो पल्य होती है। इनके पृष्ठभाग में एक सौ अट्ठाईस हड्डियाँ होती हैं। वे तीसरे दिन बहेड़ा फल बराबर अमृतमय आहार करते हैं। उत्पन्न हुए बालक को शय्या पर अँगूठा चूसने, बैठने, अस्थिर गमन, गुणप्राप्ति, तारुण्यप्राप्ति एवं सम्यक्त्व ग्रहण की योग्यता में क्रमशः पाँच-पाँच दिन लग जाते हैं। शेष सब स्थिति उत्तम भोगभूमि की ही तरह होती हैं।
जघन्य भोगभूमि की अवस्थिति
जघन्य भोगभूमि की अवस्थिति (सुषमा दुषमा काल) में मनुष्यों की ऊँचाई दो हजार धनुष, आयु एक पल्य होती है। यहाँ के स्त्री-पुरूषों