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________________ अनेकान्त 59 / 3-4 63 है और न दूसरों से कराता है । उत्कृष्ट भक्त प्रत्याख्यान - सल्लेखना का काल पूर्ण बारह वर्ष होता है । नाना कायक्लेशों के साथ वह चार वर्ष बिताता है । फिर दूध आदि रसों को त्यागकर 4 वर्ष तक शरीर को सुखाता है । फिर आचाम्ल और निर्विकृति के द्वारा 2 वर्ष व्यतीत करता है । आचाम्ल के द्वारा एक वर्ष व्यतीत करता है । शरीर की सल्लेखना के उपायों में आचाम्ल को उत्कृष्ट माना जाता है इसमें 2 दिन या 3 दिन या 4 दिन या 5 दिन के उपवास के बाद अधिकतर परिमित और लघु आहार लेता है । शेष एक वर्ष को क्षेपक मध्यम तप के द्वारा 6 माह और उत्कृष्ट तप के द्वारा शेष 6 माह बिताता है । " 1 अभ्यन्तर सल्लेखना - कषायों से रहित होने पर ही परिणाम विशुद्धि होती है। अतः परिणाम विशुद्धि को कषाय सल्लेखना कहा है। जिस मुनि का चित्त क्रोधाग्नि से कलुषित है उसके परिणाम विशुद्ध नहीं होते अतः ऐसा मुनि कषाय - सल्लेखना वाला नहीं होता है, क्योंकि कषाय को कृश करना ही कषाय- सल्लेखना है । क्षपक को चाहिए कि यदि थोड़ी भी कषाय आग की भांति उठे तो बुझा दें । कषाय दूर होते ही राग द्वेष की उत्पत्ति शान्त हो जाती है। जितने भी परिग्रह रागद्वेष को उत्पन्न करते हैं उन परिग्रहों को छोड़ने वाला अपरिग्रही साधु राग व द्वेष को निश्चय से जीतता है। समाधिमरण में सहायक पाँच शुद्धियाँ व पाँच प्रकार के विवेक भगवती आराधना में समाधिमरण की सहायक पाँच प्रकार की शुद्धियाँ व पाँच प्रकार के विवेक का कथन किया गया है। उसे प्राप्त किये बिना क्षपक को समाधि प्राप्त नहीं होती है । परम समाधि को पाने के लिए प्रज्ञाशील क्षपक को इन शुद्धियों को निश्चित ही धारण करना चाहिए ।
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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