SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 59/3-4 41 मंदिर के बाह्यभाग के भीतर अष्टभुजी विष्णु और शिवलिंग जैसी हिन्दू देवताओं की अद्भुत प्रतिमाएँ भी हैं। चारित्रिक विशेषताओं की दृष्टि से ये शिल्पांकित आकृतियाँ विशुद्ध रूप से परम्परागत हैं। चित्तौड़ का दूसरा उल्लेखनीय मंदिर सात-बीस-ड्योढ़ी है, जिसका रचनाकाल शैलीगत आधार पर 15 वीं शताब्दी निर्धारित किया जा सकता है। इस मंदिर में गर्भगृह अंतराल, गूढ-मण्डप के पार्श्व में छोटे-छोटे देवालय भी हैं। सप्तरथ प्रकार के शिखर के चारों ओर अंगों और कर्ण-श्रृंगों की तीन पंक्तियाँ भी संलग्न हैं। राजस्थान के मध्यकालीन कला इतिहास की दृष्टि से बीकानेर के जैन मंदिर भी महत्वपूर्ण हैं। बीकानेर का सबसे प्राचीन पार्श्वनाथ जैन मंदिर है। संरचना की दृष्टि से यह मंदिर एक अत्यंत महत्वाकांक्षी योजना है और इसमें भारतीय इस्लामी स्थापत्य के तत्वों का निश्चित रूप में प्रयोग हुआ है। इस मंदिर की शैली में परंपरागत तथा मुगल, इन दो शैलियों का समन्वय है, जिसमें परंपरागत शैली का शिखर तथा मुगल-शैली का मण्डप विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस मंदिर के लम्बे शिखर की बाह्य संरचना में बाह्य कोणों तथा लघु शिखरो से युक्त उरःश्रृंगो का सुंदरता के साथ उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक दिशा के मध्य भाग में प्रक्षिप्त दो तलों वाले गोखे हैं। इस मंदिर का विवरण देते हुए गोऐत्ज ने लिखा है – “इस मंदिर का गर्भगृह एवं प्रदक्षिणापथ द्वितल है। प्रत्येक तल में चारों ओर प्रवेश द्वार हैं, ऊपरी तल के चारों द्वार गोखों में खुलते हैं। ये चारों गोखे एक तंग सीढ़ियों द्वारा परस्पर संबंधित हैं। ऊपरी तल के मध्यवर्ती कक्ष में जैन प्रतीक समवसरण का अंकन जिसमें 'विश्व-नगर' की अध्यक्षता करते हुए धर्म-प्रचारक तीर्थकर सर्वतोभद्र रूप से दर्शाये गये हैं। यह मंदिर जैसलमेर के पीले पत्थरों से निर्मित है। इस मंदिर का स्थापत्य मारवाड़ और जैसलमेर के समकालीन अन्य जैन मंदिरों की भांति अनगढ़ है परन्तु मण्डप, उसके चारों ओर की वीथियाँ तथा प्रवेश मण्डप के कारण यह प्रभावशाली बन पड़ा है। इन संरचनाआ का आंशिक रूप से पुनर्निर्माण सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में हुआ है।"36
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy