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अनेकान्त 59 / 1-2
कुण्डलपुर जिस विदेह देश का अंग था उसके विषय में पं. जी ने हरिवंशपुराण श्लोक । सर्ग -2 का उल्लेख किया है
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अथ देशोस्ति विस्तारी जंबुद्वीपस्य भारते ।
विदेह इति विख्यातः स्वर्गखंडसमः श्रियः । ( सर्ग - 2 श्लोक 1 )
जम्बूदीप के भारतवर्ष में विस्तार युक्त विदेह नाम का देश प्रसिद्ध था, जो लक्ष्मी से स्वर्ग के खण्ड समान शोभायमान होता था ।
विदेह देश का कथन वर्धमान चरित्र श्लोक - 1 सर्ग - 17 में हुआ है, जहाँ विश्व विख्यात कुण्डपुर नगर था
'ख्यातं पुरं जगति कुंडपुराभिधानं ( 7-7 ) 1 S
विदेह देश की स्थापना एवं उसके वैभव के वर्णन के पश्चात् पं. जी ने उत्तर पुराण पर्व 74 के श्लोक 251-252 को उद्धृत कर लिखा कि 'जब अच्युतेन्द्र की आयु छह माह शेष रह गई थी और वह स्वर्ग से अवतार लेने के सन्मुख हुआ । उस समय भरत क्षेत्र के विदेह नाम के देश में कुंडपुर नगर के राजा सिद्धार्थ के भवन के प्रांगण में प्रतिदिन साढ़े तीन करोड़ मणियों की वर्षा होने लगी थी ।" रत्नों की वर्षा की पुष्टि वज्जिकांचल के वासोकुण्ड - वैशाली के लोक गीतों से भी होती है ।
विदेह देश की स्थिति / परिसीमा :
पं. प्रवर दिवाकर जी ने 'महाश्रमण महावीर' पृष्ठ 120 में भ. महावीर की जन्म भूमि विदेह देश की चतुर्सीमा का निर्धारण 'बिहार थ्रो दि एजेज' पृष्ठ 51-55 के अनुसार निम्न प्रकार से किया !
" जिसे अभी बिहार कहते हैं उसमें कारूप, मगध, अंग, वैशाली आदि अनेक देश समाविष्ट थे। वर्तमान तिरहुत डिवीजन में विदेह अमूर्त है । विदेह की राजधानी मिथिला थी । वह नेपाल की तराई में विद्यमान जनकपुरी मानी जाती है। कुछ समय के अनंतर दक्षिण विदेह