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________________ अनेकान्त 59 / 3-4 1700 तक अन्त्यकाल अथवा प्रभाचन्द्र काल के रूप में जैनन्याय के विकास का काल माना है।" ये काल विभाजन प्रमाण व्यवस्थित स्थिति के सम्बन्ध में ठीक हैं, परन्तु प्रमाण व्यवस्था के सूत्रपात के रूप में नहीं, क्योंकि ई. प्रथम के लगभग जब जैनेतर दर्शनों में संस्कृत भाषा में दर्शन के ग्रन्थों का प्रणयन हो रहा था, उस समय तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वामी ने प्रथम बार आगमिक युग की ज्ञान चर्चा को प्रमाण के साथ संयुक्त कर प्रमाण के भेदादि का स्पष्ट प्रतिपादन किया, जो दिगम्बर और श्वेताम्बर दोंनो परम्पराओं को मान्य हुआ । 21 वैदिक परम्परा के आद्य उपलब्ध ग्रन्थ ऋग्वेद में यथार्थ ज्ञान के लिए 'प्रमा' शब्द का प्रयोग पाया जाता है ।" सायण ने प्रमा शब्द की व्याख्या में यज्ञवेदी की इयत्ता - परिमाण के लिए प्रमाण तथा इयत्ता परिज्ञान के लिए प्रमिति शब्द का प्रयोग किया है। शतपथ ब्राहाण एवं छान्दोग्य उपनिषद् में 'वाकोवाक्य' विद्या का उल्लेख है, जो बाद में तर्कविद्या के रूप अभिहित हुई । ऐतरेय ब्राहाण में युक्ति शब्द का प्रयोग पाया जाता है। 10 चरकसंहिता में प्रमाण शब्द का स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है । " वेदों के परवर्ती उपनिषद् साहित्य में आत्म निरूपण के समय जिन तार्किक शब्दावलियों एवं वाक्यों का आश्रय लिया गया है, वे उत्तरवर्ती वैदिक दर्शनों के प्रमाणमीमांसा के आधार स्तम्भ बने । उदाहरण के लिए वैशेषिक सूत्र में यथार्थ एवं अयथार्थ ज्ञान के लिए प्रयुक्त विद्या एवं अविद्या पद उपनिषद् साहित्य में प्रयुक्त पराविद्या और अपराविद्या के विकसित रूप है । बाल्मीकि रामायण, महाभारत, मनुस्मृति आदि में आत्मविद्या के रूप में प्रतिष्ठित आन्वीक्षिकी विद्या को हेतुशास्त्र हेतुविद्या, तर्कविद्या, वादविद्या आदि नामों से अभिहित किया गया । 12 कौटिल्य ने भी आन्वीक्षिकी विद्या को सभी विद्याओं में उत्तम कहा है । 13 वात्स्यायन ने इस विद्या को न्यायविद्या कहा है । प्रमाणों द्वारा वस्तुओं की परीक्षा करना न्याय है। इस तरह वैदिक दर्शनों के लिए गौतम कणाद आदि से पूर्व उस परम्परा के मनीषियों ने प्रमाण की मूलभूत सिद्धान्तों की सर्जना के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया ।
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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