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________________ मानने वाले भी उन्हीं साधुओं का आशीर्वाद चाहते हैं, जो कभी उन्हें सुहाते ही नहीं थे। सोनगढ़ मिशन जो आज जयपुर मिशन बन चुका है और जिनकी मान्यता है कि विरोध के बजाय अपनी लाईन बड़ी बनाओ । जनसामान्य को अपनी विचारधारा के अनुकूल ढालो सब ठीक हो जायगा । बात भी सही है । यथार्थ के धरातल पर आज जिस तरह विधिवत् उनका प्रचार प्रसार चल रहा है, उससे उनकी अवधारणा की पुष्टि होती है । आज यत्र-तत्र सर्वत्र उनके अनुयायी एककुट होकर मिशन की कामयाबी में जुटे हैं और तथाकथित परम्परा निष्ठ तेरह - बीस के झमेले में उलझा है या उलझाने की कोशिश की जा रही है । साधुभक्त समाज आज न तो साधुभक्त ही रह गया है और न ही उसकी निष्ठा ही एक निष्ठ रही है। समाज का तथाकथित नेतृत्व पंथ व्यामोह के दलदल में फंसा हुआ है। ऐसा नेतृत्त्व कुछ कर सकेगा इसकी संभावना नहीं के बराबर है। महाभारत में कौरवों की पराजय का कारण बहुनेतावाद था, वही स्थिति आज अपने समाज की है। विरोध दर विरोध की नीति कभी कारगर साबित नहीं हुई। अब जो लोग सोचना ही नहीं चाहें और जानकर भी अनजान बने रहने का ढोंग कर रहे हैं उनकी क्या कहें। समाज का आम व्यक्ति इन सब चीजों से अनजान ठगा जा रहा है और परम्परा तथा समुचित विकास के औचित्य को वाद-विवाद के घेरे में लाकर परम्परा व समाज का कौन सा हित साधन टोंग्या जी व बीसपंथी वाले कर रहे हैं, ये वे ही जानें। अन्त में, लाला जी । इतना अवश्य कहूंगा कि संकीर्णताओं से ऊपर उठकर तथा व्यक्तिगत मान/ अपमान को परे रखकर, सांस्कृतिक धरोहरों के समुचित विकास पर ध्यान केन्द्रित कर ही उनकी रक्षा हो सकेगी। इस लम्बी बातचीत के बाद लाला जी बोले- ठीक है डा.सा.! हम तो अब यहीं सोचेंगें 'जो जो देखी वीतराग ने सो सो होसी वीरा रे ।' सम्पादक जैन प्रचारक जैन बालाश्रम नई दिल्ली - 2
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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