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अनेकान्त 59 / 1-2
रामचन्द्र यति ने आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध ग्रंथ शांर्गधर संहिता का पद्यमय भाषानुवाद किया जे वैद्य विनोद (1969 ई.) के नाम से प्रसिद्ध और उपलब्ध है। इसी प्रकार कुछ विद्वानों के द्वारा संस्कृत भाषा में निबद्ध मूल ग्रंथों का गद्यात्मक अनुवाद किया गया। इससे सामान्यजन को संस्कृत भाषा में निबद्ध मूल ग्रंथों को समझने में अत्यधिक अनुकूलता एवं सुविधा हुई।
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इस प्रकार आयुर्वेद विषयाधारित ग्रंथों की रचना करने में जैन मनीषियों का योगदान अविस्मरणीय है । जैन मनीषियों ने आयुर्वेद के जिन ग्रंथों की रचना की है उनका अवलोकन अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि उनमें अधिकांशतः जैन सिद्धांतों का अनुकरण तथा धार्मिक नियमों का परिपालन किया गया है जो उनकी मौलिक विशेषता है । ग्रंथ रचना में व्याकरण सम्बन्धी नियमों का पालन करते हुए रस, छन्द अलंकार आदि काव्यांगों का यथा सम्भव प्रयोग किया गया है जिससे ग्रंथ कर्त्ता के वैदुष्य एवं बहुमुखी प्रतिभा का आभास सहज ही हो जाता है । ग्रंथों में प्रौढ़ एवं प्रांजल भाषा का प्रयोग होने से ग्रंथों-रचनाओं की उत्कृष्टता निश्चय ही द्विगुणित हुई है। अतः यह एक सुस्पष्ट एवं स्थापित तथ्य है कि जिन मुनिप्रवरों, मनीषियों, आचार्यो, विद्वत्प्रवरों के द्वारा प्राणावाय सम्बन्धी आयुर्वेद के ग्रंथों की रचना की गई है वे केवल एक शास्त्रज्ञ या स्वशास्त्र पारंगत न होकर अध्यात्म, धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदि बहुशास्त्र विदू होने के साथ-साथ आयुर्वेद शास्त्र के ज्ञाता, कृताभ्यासी एवं अनुभव से परिपूर्ण विद्वान् थे ।
- राजीव कॉम्पलेक्स के पास इटारसी (म.प्र.)