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________________ अनेकान्त 59/1-2 17 चित्तोत्सव' नामक ग्रंथ की रचना की थी जिसे हंसराज निदान भी कहा जाता है। इन्होंने नेमिचन्द्र के 'द्रव्य संग्रह' पर 'बालावबोध' भी लिखा है। इनका समय 17वीं शताब्दी का पूर्वार्ध है। हस्तिरुचि (1669 ई.) ये तपागच्छीय रुचि शाखा के जैन यति थे। 'चित्रसेन पद्मावतीरास' के अन्त में इन्होंने अपनी गुरु परम्परा प्रतिपादित की है। इनके द्वारा रचित 'वैद्यवल्लभ' नामक ग्रंथ वैद्यक ग्रंथों में अन्यतम् है जो 1669 ई. की रचना है। ऊपर अति संक्षेप में जैनाचार्यो, उनके द्वारा रचित वैद्यक या आयुर्वेद के ग्रंथों का परिचय दिया गया है। इनके अतिरिक्त और विद्वान हुए हैं जिन्होंने अपने ज्ञान और लेखनी से आयुर्वेद जगत् और आयुर्वेद साहित्य को उपकृत किया है उनमें से कविवर मान कृत कवि विनोद (1688 ई.) और कवि प्रमोद (1689 ई.), जिनसमुद्र सूरि कृत 'वैद्यक सारोद्धार' या वैद्य चिन्तामणि (1680 ई.) जोगीदासकृत वैद्यकसार (1705 ई.) मेघमुनि कृत मेद्य विनोद (1761 ई.), गंगारात यति कृत यति निदान (1821 ई.) आदि उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकारा विभिन्न औषध योगों के संग्रह के रूप में स्वतन्त्र रूप से रचित अनेक रचनाएं भी प्राप्त होती हैं जो अधिकांशतः गुटका रूप में हैं। इनमें से अनेक ग्रंथ श्री अगर चन्द्र नाहटा के व्यक्तिगत संग्रह में थे। कुछ विद्वानों ने संस्कृत में रचित आयुर्वेद के ग्रंथों में पद्यमय भाषानुवाद किया है। उन्होंने यह अनुभव किया कि संस्कृत भाषा दुरूह होने से सामान्यजन को उन ग्रंथों को पढ़ने और समझने में कठिनाई होती है, अतः लोगों की सुविधा के लिए उन्होंने सरल और सुबोध पद्यमय सुललित रचना के रूप में उनका भाषानुवाद किया। जैसे लक्ष्मीवल्लभ ने शम्भुनाथ कृत काल ज्ञान (1684 ई.) और मूत्र परीक्षा का, समरथ ने वैद्यनाथ पुत्र शांतिनाथ की रसमंजरी (1707 ई.) का,
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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