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________________ 124 अनेकान्त 59/1-2 स्वयं को पूज्यपाद का शिष्य बतलाते हुए पूज्यपाद एवं जिनेन्द्र देव की उक्तियों को ही अपनी उपर्युक्त कृति बतलाया है। कवि मंगराज और उनकी कृति के सम्बन्ध में पं. भुजबली शास्त्री की एक विस्तृत लेख "जैन सिद्धान्त भास्कर", भाग-10, किरण-1 (जुलाई, 1943) में प्रकाशित हुआ। इस सुविस्तृत लेख में इस ग्रंथ और ग्रंथकर्ता के विषय में विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला गया है। यशःकीर्ति (14वीं शताब्दी) __इनके द्वारा लिखत 'जगत्सुन्दरी प्रयोग माला' नामक ग्रंथ का उल्लेख जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह, भाग-1 में मिलता है। इस ग्रंथ की एक प्राचीन हस्तलिखित प्रति जो 'योनिप्रामृत' के साथ मिली हुई है भण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना में सुरक्षित है जिसका लिपिकाल वि. सं. 1582 (1525 ई.) है। अतः स्पष्ट है कि इसका रचनाकाल इससे पूर्व का है। यह ग्रंथ यद्यपि प्राकृत भाषा में रचित है, किन्तु मध्य में कहीं कहीं संस्कृत गद्य एवं कुछ स्थानों पर प्राचीन अपभ्रंश या हिन्दी का प्रयोग दृष्टिगत होता है। श्री जुगलकिशोर मुख्तार जी ने भी ‘अनेकान्त' में इस ग्रंथ के विषय में चर्चा की है। श्री परमानन्द शास्त्री ने जैन साहित्य के इतिहास में छह यशःकीर्ति नामक मुनियों का संकेत किया है। प्रस्तुत ग्रंथ के कर्ता मुनि यशः कीर्ति चौदहवीं शताब्दी के प्रतीत होते हैं। मेरुतंग (14वीं शताब्दी) इन्होंने रसशास्त्र सम्बन्धी एक प्राचीन ग्रंथ 'कंकालय रसाध्याय' पर टीका लिखी है। इसका उल्लेख 'केटलोगस केटेलोगम', भाग-2, पृष्ठ15 पर किया गया है। 'कंकालय रसाध्याय' की रचना जैन विद्वान चम्पक द्वारा की गई थी। मेरुतुंग जैन साधु थे और इनके द्वारा 1386 में इस टीका के लिखे जाने उल्लेख प्राप्त होता है। 'गोइल के इतिहास' में इस टीका ग्रंथ को 'रसायन प्रकरण' कहा गया है और इसका रचना काल 1387 लिखा है।
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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