SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 118 अनेकान्त 59/1-2 द्वारा रचित 'कल्याणकारक' ग्रंथ जो वर्तमान में सर्वांगपूर्ण (अष्टांगयुक्त) प्राणावाय (जैन चिकित्सा शास्त्र) एवं जैन दृष्टिकोण पर आधारित है। इसमें किसी भी रूप में मांसाहार सेवन नहीं करने का निर्देश करते हुए उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन और अहिंसा की प्रतिष्ठापना की गई है। यद्यपि ग्रंथ लेखक श्री उग्रादित्याचार्य ने अपना कोई परिचयात्मक विवरण नहीं दिया है, तथापि अपने गुरू के विषय में स्पष्ट रूप से लिखा है। उन्होंने अपने गुरू का नाम 'श्रीनन्दि' बतलाया है जो अशेषागमज्ञ (जिनागम और तदन्तर्गत सम्पूर्ण प्राणावाय के ज्ञाता) थे। उनसे ही प्राणावाय (आयुर्वेद शास्त्र) में वर्णित दोषों (वात-पित्तकफ), उन दोषों से उत्पन्न उग्र रोगों और उनकी चिकित्सा आदि का ज्ञान प्राप्त कर इस ग्रंथ की रचना की थी। इससे स्पष्ट है कि उस काल में श्री नन्दि अशेष प्राणावाय शास्त्र के ज्ञाता के रूप में ख्यापित थे। कल्याणकारक के अनुसार आचार्य श्रीनन्दि को विष्णुराज जो परमेश्वर (परमश्रेष्ठ) की उपाधि से अलंकृत थे की राजसभा में विशेष आदर प्राप्त था। मुनीन्द्र श्रीनन्दि का गुणगान करते हुए श्री उग्रादित्याचार्य लिखते हैं-"महाराजा विष्णुराज के मुकुट की माला से जिनके चरण युगल शोभित हैं अर्थात् जिनके चरण कमल में विष्णुराज नमस्कार करता है, जो सम्पूर्ण आगम के ज्ञाता हैं, प्रशंसनीय गुणों से संयुक्त हैं और जिनसे मेरा उद्धार हुआ है उनकी आज्ञा से नाना प्रकार के औषधि दान की सिद्धि के लिए (चिकित्सा की सफलता के लिए) और सज्जन वैद्यों के वात्सल्य प्रदर्शन रूपी तप की पूर्ति के लिए जिनमत (जिनामग) से उद्धृत इस कल्याणकारक ग्रंथ को इस धरा पर बनाया। ___ उपलब्ध विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर विद्वानों द्वारा इनका समय आठवीं शताब्दी का उत्तरार्ध निर्धारित किया गया है। विद्वानों का यह भी मत है कि श्री उग्रादित्याचार्य मूलतः त्रिकलिंग वर्तमान में तेलंगाना
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy