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________________ अनेकान्त 59/1-2 100 आदि करने का कार्य निर्यापकाचार्य ही करते हैं।” क्षपक को रोगादि से मुक्ति के लिये जिन वचन ही औषधि हैं ऐसा उपदेश देकर जिन धर्म में दृढ़ता करके आराधनाओं की आराधना में लीनता प्रदान की जाती है। जो क्षपक सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप की उत्कृष्ट आराधना करते हैं वे उसी भव से सिद्धत्व प्राप्त करते हैं। मध्यम आराधना करने वाले धीर वीर पुरुष तीन भव में कर्म रहित अवस्था अर्थात् मोक्ष प्राप्त करते हैं। जघन्य आराधना करने वाले सात जन्मों में सिद्ध अवस्था प्राप्त कर लेते हैं। समाधि की अनुमोदना करने वाले और क्षपक के दर्शन करने वाले भी समाधि पूर्वक मरण कर निकट भव में सिद्धत्व प्राप्त करते हैं। सल्लेखना मनुष्य भव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है। संदर्भ सूची 1. सवार्थ सिद्धि -7/22, 2. राज वार्तिक -7/22/3, 3. समाधि मरणोत्साह दीपक-1, 4. नियमसार -122-123, 5. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 5/1, 6. सवार्थ सिद्धि 7/22, 7. धवला 1.1.1.33, 8. भगवती आराधना 26, 9. भगवती आराधना 2011 से 2024, 10. मूलाचार प्रदीप 2819-2820, 11. वसुनंदि श्रावकाचार 271, 12. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 5/4, 13. सावय पन्नति 378, 14. समाधि मरणोत्साह दीपक 35, 15. मरण कण्डिका 433, 16. भगवती आराधना 258, 259, 17. समाधि दीपक 21.22 पृ. -1 -मु.पो.- रजवॉस जिला-सागर (म.प्र.)
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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