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अनेकान्त-58/1-2
समाधि की अनुमोदना करने वाले और क्षपक के दर्शन करने वाले भी समाधि पूर्वक मरण कर निकट भव में सिद्धत्व प्राप्त करते हैं।
सल्लेखना मनुष्य भव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है। हमें अपना जीवन सुखी बनाने के लिये सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण करना चाहिये। आज तक हम ने एक बार भी समाधिपूर्वक मरण नहीं किया है। मरणों के अनेक भेद जानकर हमें संस्थान और संहनन को देखते हुये पंडित मरण में सविचार भक्त प्रत्याख्यान मरण की भूमिका में पहुँचकर समाधि मरण करना चाहिये। समाधि की भावना आज से ही मन में बनाकर जहाँ समाधि हो वहाँ क्षपक के दर्शन कर अनुमोदना अवश्य करना चाहिये। क्योंकि अनुमोदना करने वाले की अवश्य ही समाधि होती है। अतः निरन्तर समाधिमरण की भावना करते रहना चाहियेदुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं
जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं।
संदर्भ
1. सवार्थ सिद्धि-7/22, 2 राजवार्तिक 7/22/3, 3 समाधिमरणोत्सव दीपक-1, 4. नियमसार-122-123, 5. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 5/1, 6. सवार्थसिद्धि 7/22, 7. धवला 1-1 1.33, 8 भगवती आराधना 26, 9. भगवती आराधना 2011 से 2024, 10. मूलाचार प्रदीप 2819-2820, 11. वसुनंदि श्रावकाचार 271, 12 रत्नकरण्ड श्रावकाचार 5/4, 13. सावय पन्नति 378, 14. समाधिमरणोत्सव दीपक 35, 15. मरणकण्डिका 433, 16. भगवती आराधना 258, 259, 17. समाधि दीपक 21.22 पृ.-1
-रजवॉस, जिला-सागर (म. प्र.)