________________
आचार्य पूज्यपाद और उनका इष्टोपदेश
-डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन भारतीय वसुन्धरा रचनाकारों के लिए बड़ी उर्वर रही है। जिस पृष्ठभूमि की आवश्यकता एक साहित्य सर्जक को होती है वैसी पृष्ठभूमि भारतीय वसुन्धरा और उस पर निवास करने वाले लोगों की रही है। यहाँ व्यक्ति का आदर-सम्मान उसके व्यक्ति होने के कारण नहीं अपितु उसके व्यक्तित्व की चमक-दमक एवं प्रदेय से आँका जाता है। 'इष्टोपदेश' ग्रन्थ के रचयिता आचार्य पूज्यपाद ऐसे ही साहित्य-सर्जकों में से हैं जिन्होंने अपनी महनीय कृतियों से आम जन को तो उपकृत किया ही है स्वयं को भी सम्माननीयों की श्रेणी में बिठाया। उनके व्यक्तित्व में हमें एक संस्कृतज्ञ कवि, दार्शनिक, वैयाकरण, तार्किक, वाग्मी और ध्येयवान् व्यक्तित्व के दर्शन सहज ही हो जाते हैं। वे साहित्य जगत की अमर विभूति हैं। आदिपुराण के कर्ता आचार्य जिनसेन ने उन्हें कवियों में तीर्थकर मानते हुए उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का गुणगान किया है। वे लिखते हैं
कवीनां तीर्थकद्देवः किं तरां तत्र वर्ण्यते। विदुषां वाङमलध्वंसि तीर्थं यस्य वचोमयम्।।' (आदिपुराण 1/52)
अर्थात् जो कवियों में तीर्थकर के समान थे और जिनका वचन रूपी तीर्थ विद्वानों के वचनमल को धोने वाला है उन देव अर्थात् देवनन्दि आचार्य की स्तुति करने में भला कौन समर्थ है?
यहाँ उल्लेखनीय है कि आचार्य देवनन्दि ही आचार्य पूज्यपाद हैं। श्रवण बेलगोला से प्राप्त शिलालेख के अनुसार
यो देवनन्दिप्रथमाभिधानो बुद्धया महत्या स जिनेन्द्र बुद्धिः । श्री पूज्यपादोऽजनि देवताभिर्यत्पूजितं पादयुगं यदीयं ।।