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अनेकान्त 58/3-4
उस समय की चन्द्र-कुण्डली
उस समय की लग्न कुण्डली
रवि 12 / 10 /
भौम
बुध ।
गुरु चंद्रमा
गुरु १ चन्द्र
शनि ।
भीम
केतु
शनि केतु
प्रतिष्ठाकर्ता के लिए लग्नकुण्डली का फल सूर्य ___ जिस प्रतिष्ठापक के प्रतिष्ठा-समय द्वितीय स्थान में सूर्य रहता है वह पुरुष बड़ा भाग्यवान् होता है। गौ, घोड़ा और हाथी आदि चौपाये पशुओं का पूर्ण सुख उसे होता है। उसका धन उत्तम कार्यो में खर्च होता है। लाभ के लिए उसे अधिक चेष्टा नहीं करनी पड़ती हैं। वायु और पित्त से उसके शरीर में पीड़ा होती है।
चन्द्रमा का फल
यह लग्न से चतुर्थ है इसलिए केन्द्र में है साथ-ही-साथ उच्च राशि का तथा शुक्लपक्षीय है। इसलिए इसका फल इस प्रकार हुआ होगा।
चतुर्थ स्थान में चन्द्रमा रहने से पुरुष राजा के यहाँ सबसे बड़ा अधिकारी रहता है। पुत्र और स्त्रियों का सुख उसे अपूर्व मिलता है। परन्तु यह फल वृद्धावस्था में बहुत ठीक घटता है। कहा है“यदा बन्धुगोबान्धवैरत्रिजन्मा नवद्वारि सर्वाधिकारी सदैव” इत्यादि
भौम का फल
यह लग्न से पंचम है इसलिए त्रिकोण में है और पंचम मंगल होने से