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________________ अनेकान्त 58/3-4 139 (1) गृह-शनि, (2) होरा-चन्द्र, (3) नामवंश-मंगल, (4) त्रिशांश-बुध, (5) द्रेष्काण-शुक्र, (6) द्वादशांश गुरु का हुआ। अब इस बात का विचार करना चाहिए कि षड्वर्ग कैसा है और प्रतिष्ठा में इसका क्या फल है? इस षड्वर्ग में चार शुभग्रह पदाधिकारी हैं और दो क्रूर ग्रह। परन्तु दोनों क्रूर ग्रह भी यहां नितांत अशुभ नहीं कहे जा सकते हैं क्योंकि शनि यहां पर उच्च राशि का है। अतएव यह सौम्य ग्रहों के ही समान फल देने वाला है। इसलिय इस षड्वर्ग में सभी सौम्य ग्रह हैं, यह प्रतिष्ठा में शुभ है और लग्न भी बलवान है; क्योंकि षड्वर्ग की शुद्धि का प्रयोजन केवल लग्न की सवलता अथवा निर्बलता देखने के लिए ही होता है, फलतः यह मानना पड़ेगा कि यह लग्न बहुत ही बलिष्ठ है। जिसका कि फल आगे लिखा जायगा । इस लग्न के अनुसार प्रतिष्ठा का समय सुबह 4 बज कर 38 मिनट होना चाहिए। क्योंकि ये लग्न, नवांशाद की ठीक 4 बज कर 38 मिनट पर ही आते हैं। उस समय के ग्रह स्पष्ट इस प्रकार रहे होंगे। नवग्रह-स्पष्ट-चक्र रवि चन्द्र भौम बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु ग्रह 11 1 2 10 1 0 6 0 6 राशि 24 257 2 3 5 6 7 7 अश 43 41 26 58 1 36 13 21 21 कला 14 25 48 51 31 42 59 37 37 विकला 58 782 45 108 4 56 2 3 3 गति 45 52 37 59 41 52 31 11 11 विगति यहाँ पर ग्रह-लाघव के अनुसार अहर्गण 478 है तथा चक्र 49 है, करणकुतूहलीय अहर्गण 1235.92 मकरन्दीय 1688329 और सूर्यसिद्धान्तीय 714403984956 है। परन्तु इस लेख में ग्रहलाघव के अहर्गण पर से ही ग्रह बनाए गए हैं और तिथि नक्षत्रादिक के घट्यादि भी इसीके अनुसार हैं।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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