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________________ अनेकान्त 58/3-4 भला कहो तो सही कि मोहरूपी महामल्ल के मद को चूर्ण करने वाले श्री भद्रबाहु स्वामी की महिमा कौन कह सकता है? जिनके शिष्यत्व के पुण्यप्रभाव से वनदेवताओं ने चन्द्रगुप्त की बहुत दिनों तक सेवा की । 120 श्रुतकेवली भद्रबाहु के विविध जीवन प्रसंगों से उनका माहात्म्य स्पष्ट है । दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराएं उनको अति महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती हैं फिर भी उनके शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य के सम्बन्ध में मतैक्य नहीं है। श्रुतधर भद्रबाहु और निमित्तधर भद्रबाहु के पार्थक्य का भी उल्लेख मिलता है । दिगम्बर परम्परा के हरिषेण कृत बृहत्कथाकोष एवं रत्ननन्दी कृत 'भद्रबाहुचरित' के उल्लेखानुसार श्रुतकेवली भद्रबाहु अवन्ति देश पहुँचे । " वहाँ के शासक श्री चन्द्रगुप्त ने अपने द्वारा देखे गये 16 स्वप्न भद्रबाहु स्वामी को सुनाये। उन्होंने उनका फल अनिष्टसूचक बताया, जिससे सम्राट को वैराग्य हो गया । उसने श्रुतकेवली भद्रबाहु से श्रमण दीक्षा अंगीकार कर ली। दीक्षा लेने वाले अन्तिम सम्राट चन्द्रगुप्त थे ।" गोवर्द्धनाचार्य के बाद 29 वर्ष जिनशासन की प्रभावना काल श्री भद्रबाहु का रहा है । श्वेताम्बर परम्परा श्रुतकेवली भद्रबाहु का शिष्य चन्द्रगुप्त को नहीं मानती है। आवश्यकचूर्णि में श्रुतकेवली भद्रबाहु की नेपाल यात्रा का कथन किया गया है । 12 श्वेताम्बरीय साहित्य तित्थोगालिय पइन्ना, आवश्यक नियुक्ति, परिशिष्ट पर्व आदि ग्रन्थों में श्रुतकेवली भद्रबाहु के जीवन प्रसंग उपलब्ध हैं, किन्तु उनके शिष्य चन्द्रगुप्त का उल्लेख नहीं है और न दक्षिण यात्रा का ही उल्लेख है। हाँ, ऐसा उल्लेख अवश्य है कि भद्रबाहु विशाल श्रमण संघ के साथ दुष्काल में बंगाल में रहे जैसा कि श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थ परिशिष्ट पर्व में लिखा है इतश्च तस्मिन् दुष्काले कराले काल रात्रिवत् । निर्वाहार्थं साधुसंघस्तीर नीर निधेर्ययौ ।। अर्थात् जीवन निर्वाहार्थ साधुसंघ समुद्री किनारों पर दुष्करल की घड़ियों
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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