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________________ अनेकान्त 58/3-4 117 भागों गर्भगृह, नवरंग और द्वार मण्डप के रूप में विभाजित किया गया है। मंदिर परिसर में अनेक शिलालेख भी संरक्षित हैं। चन्द्रगिरि पर ध्यान करने योग्य अनेक शिलायें और कन्दरायें हैं। जिस कन्दरा में भद्रबाहु ने शरीर का त्याग किया और जिसमें मुनि चन्द्रगुप्त ने भी बारह वर्षों तक उत्कट आत्म साधना की, वह 'भद्रबाहु गुफा' कहलाती है। इसमें उन महान् आचार्यश्री के चरण स्थापित हैं। गुफा को चट्टान की एक कुदरती छत ने कमरे का रूप दे दिया है। भक्तों की मान्यता है कि इन चरणों की भावपूर्वक पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चन्द्रगिरि प्राकृतिक सौन्दर्य का दिव्य धाम है। लोग तो कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहते हैं, किन्तु भव्यजीवों का स्वर्ग तो यह चन्द्रगिरि है। इस कलिकाल में धर्माराधन और तप-त्याग के द्वारा स्वर्ग के रास्ते मुक्ति की ओर गमन करने के लिए चन्द्रगिरि एक उत्तम स्थान है। यहाँ की सुरम्य चट्टानों में अद्भुत चुम्बकीय आकर्षण है। यात्री का यहाँ वार-बार आने का मन होता है। - 104, नई बस्ती फीरोजाबाद (उ.प्र.) अंबर-लोह-महीणं कमसो जहमल-कलंक-पंकाणं। सोज्झावणयण-सोसे साहेति जलाडणला इच्चा ।। - ध्यानशतक, 97 जिस प्रकार जल वस्त्रगत मैल को धोकर उसे स्वच्छ कर देता है उसी प्रकार ध्यान जीव से कर्मरूप मैल को धोकर उसे शुद्ध कर देने वाला है।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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