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________________ अनेकान्त 58/3-4 109 उत्तर भारतीयों के लिये 'गोम्मटेश्वर' का नाम ही एक नई चीज है। इसका कारण यह है कि जैनों के प्रसिद्ध त्रेसठ शलाका पुरुषों में से किसी का भी नाम ‘गोम्मटेश्वर' नहीं था। भगवान् जिनसेन ने भी अपने प्रसिद्ध 'आदिपुराण' में इनके गोम्मटेश्वर नाम का वर्णन नहीं किया। मूर्ति के सम्मुख का मण्डप नौ देवताओं से सजा हुआ है। इनमें से आठ सहस्रीक दिग्पाल अपनी-अपनी सवारियों में आसीन बताये गये हैं। बीच की छत में इन्द्र महाराज भगवान् के स्नान के लिये हाथ में कलश लिये हुऐ खड़े बताये गये हैं। इन छतों की कारीगरी गजब की है। इन छतों को मंत्री बलदेव ने 12 वीं शताब्दी में बनवाया था। मूर्ति के सामने पत्थर की बाड़ लगी है जिसे सन् 1160 में भारतमैया ने बनवाया था। इस मूर्ति के निर्माण-काल के विषय में भी मतभेद है। 'इन्सक्रिपशन्स ऑफ श्रवणबेलगोला' के लेखक प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता मि लुवीस राइस, C.I.E., M.R.A.S. सन् 973 को इसकी प्रतिष्ठा का वर्ष मानते हैं। श्री गोविन्द मंजय्येश्वर पै का मत है कि सन् 981 के मार्च की 13 वीं तारीख रविवार को इस मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई थी। इस संबंध में कई मतमतान्तर प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध मत यह है: कल्यब्दे षट् शताख्ये विनुतविभव संवत्सरे मासि चैत्रे पंचम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुंभलग्ने सुयोगे। सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्तां चकार श्रीमच्चामुण्डराजो बेल्गुलनगरे गोम्मटेशप्रतिष्ठाम् ।। अर्थात्-कलि संवत् 600 में, विभव संवत्सर के चैत्र महीने की सुदी 5 रविवार को कुंभ लग्न में चामुण्डराय ने बेलगोल ग्राम में शुभकारिणी गोम्मटेश भगवान् की मूर्ति की प्रतिष्ठा की। इतना होने पर भी इस विषय में विद्वानों की भिन्न-भिन्न राय हैं। डॉ. आर. शामा शास्त्री के मतानुसार यह तिथि ता. 3 मार्च 1028 को पड़ती है। तो डॉ.ए. बेंकट सुब्बैया के भत से यह तिथि 21 अप्रैल 980 की है। श्री एस. श्रीकंठ शास्त्री के
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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