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________________ अनेकान्त 58/3-4 39 ही उत्कीर्ण एक लेख में वर्णन मिलता है कि पण्डितदेव के शिष्यों ने मंगायि वसदि के लिए दोड्डन कट्टे की कुछ भूमि दान की।28 नागदेव मन्त्री द्वारा कपठपार्श्वदेव वसदि के सम्मुख शिलाकुट्टम और रङ्गशाला का निर्माण करवाने तथा नगर जिनालय के लिए कुछ भूमिदान करने का उल्लेख एक अभिलेख29 में मिलता है। उस समय में भूमि का दान रोगमुक्त होने या कष्ट मुक्त तथा इच्छा पूर्ति होने पर भी किया जाता था। महासामन्ताधिपति रणावलोक श्री कम्बयन् के राज्य में मनसिज की रानी के रोगमुक्त होने के पश्चात् मौनव्रत समाप्त होने पर भूमि का दान किया। लेख में भूमि दान की शर्त भी लिखी है कि जो अपने द्वारा या दूसरे दान की गई भूमि का हरण करेगा, वह साठ हजार वर्ष कीट योनि में रहेगा। गन्धवारण वसदि के द्वितीय मण्डप पर उत्कीर्ण लेख में पट्टशाला (वाचनालय) चलाने के लिए भूमि दान का उल्लेख है। भूमि दान से सम्बन्धित अनेक उल्लेख अन्य अभिलेखों में भी मिलते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि तत्कालीन दान परम्परा में भूमि दान का महत्त्वपूर्ण स्थान था, जिससे प्रायः सभी प्रयोजन सिद्ध किए जाते थे। (iii) द्रव्य (धन) दान-श्रवणबेल्गोला के अभिलेखों में नगद राशि के दान स्वरूप भेंट करने के उल्लेख मिलते हैं उस धन से पूजा, दुग्धाभिषेक इत्यादि का आयोजन किया जाता था। गोम्मटेश्वर द्वार के पूर्वी मुख पर उत्कीर्ण एक लेख के अनुसार कुछ धन का दान तीर्थकरों के अष्टविधपूजन के लिए किया गया था। चन्द्रकीर्ति भट्टारकदेव के शिष्य कल्लल्य ने भी कम से कम छह मालाएँ नित्य चढ़ाने के लिए कुछ धन का दान किया। राजा भी धन का दान किया करते थे। उन्हें जिस ग्राम में निर्मित मन्दिर इत्यादि के लिए दान करना होता था, उस ग्राम के समस्त कर इस धार्मिक कार्य के लिए दान कर देते थे। राजा मारसिंह देव ने भी गोम्मटपुर के टैक्सों का दान चतुर्विशति तीर्थकर वसदि के लिए किया था। द्रव्य दान की एक विधि चन्दा देने की परम्परा भी होती थी। चन्दा मासिक या वार्षिक दिया जाता था। मोसले के वड्ड व्यवहारि
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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