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________________ अनेकान्त 58/3-4 से प्रकृति के थपेड़े सहन कर अडिग खड़ी है, यह हमारा परम कर्त्तव्य और धर्म बनता है कि हम मूर्ति की पूर्ण सुरक्षा और संरक्षण का युद्ध स्तर पर प्रबंध करें। विशेषज्ञों से परामर्श कर मूर्ति के चारों ओर यदि सम्भव हो तो अभेदी शीशे का या किसी अन्य पारदर्शी वस्तु का परकोटा बनाया जाए जिससे कि वर्षा, धूप, तूफान इत्यादि से इसकी सुरक्षा हो सके। -पूर्व प्राचार्य एफ.-131, पाण्डव नगर दिल्ली-110091 संदर्भ : 1. शेट्टर “श्रवण बेलगोल” (रुवारी धारवाड़) पृष्ठ 38 (सहयोग कर्नाटक पर्यटन)। प्रोफेसर शेट्टर कर्नाटक विश्वविद्यालय से 'श्रवणबेलगोल के स्मारक' विषय पर पी. एच.डी. हैं । वे कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड के इतिहास तथा पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष तथा भारतीय कला इतिहास सस्थान के निर्देशक भी रह चुके हैं। 2 आनन्द प्रकाश जैन “तन से लिपटी बेल” (अहिंसा मन्दिर प्रकाशन) पृष्ठ 152 3. मिश्रीलाल जैन “गोम्मटेश्वर" (राहुल प्रकाशन, गुना, म. प्र.), पृष्ठ । 4. मिश्रीलाल जैन “गोम्मटेश्वर” (राहुल प्रकाशन, गुना, म. प्र.), पृष्ठ 1 5. M H. Krishna, “Jain Antiquary", v, 4. Py 103 6. H Zimmer, “Philosophies of India" 7. Vineet Smith, "History of Fine Arts in India and Ceylon," P. 268 “Jain Amtiquary VI, 1, p 34 8. Walhouse - of Sturrock, "South Cancer, I, p 86 9. Fergusson, "A History of Indian and Asterm Architecture" II. pp. 72-73, Buchanon Travels, III, p. 83 10. विंध्यगिरि पर सुत्तालय के प्रवेश द्वार के बांयी ओर का शिलालेख क्रम संख्या 336 11. मूर्ति के पैरों के पास दॉई ओर के पाषाण सर्प विवर के 10वीं शताब्दी के लेख, क्रम संख्या 272 कन्नड़; अन्य लेख क्रम संख्या 273 तमिल 10 वी शताब्दी; क्रम सख्या 276 मराठी नागरी लिपि ।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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