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________________ अनेकान्त 58/3-4 27 ऋषभ की संतानों की परम्परा हिंसा की नहीं थी। भरत ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। तीन प्रकार की प्रतियोगिताएँ निश्चित की गई-दृष्टि युद्ध, मल्ल युद्ध और जल युद्ध ।24 ‘पउमचरिउ' में केवल दो-दृष्टि युद्ध और मुष्टि युद्ध (मल्ल युद्ध) का ही उल्लेख है। अन्य एक ग्रंथ में 'वाक-युद्ध' और 'दन्ड युद्ध' को मिलाकर पॉच प्रकार के युद्धों का समावेश वर्णन किया है। निष्कर्ष है कि जय पराजय का निर्णय दोनों भाईयों के बीच हुआ जिसमें सेनाओं ने भाग नहीं लिया। इन सभी युद्धों में बाहुबली विजयी रहे। अपमानित होकर क्रोध के वशीभूत भरत ने बाहुबली पर अमोघ चक्र से प्रहार किया।6 किवंदती है कि चक्र ने भाई को क्षति नहीं पहुँचाई। वह बाहुबली की तीन प्रदक्षिणा कर वापस लौट आया। घटना किसी भी प्रकार घटी हो, निष्कर्ष यही निकलता है कि बाहुबली चक्र के प्रहार से बच गए जिससे भरत को और भी अधिक अपमान महसूस हुआ। दीक्षा : भरत के इस क्रूर, अनीतिपूर्ण कृत्य से बाहुबली का हृदय ग्लानि से भर उठा। व्यक्ति की महत्त्वाकाक्षायें उससे क्या नहीं करा सकती इस विचार से वे सहम गए। ससार की क्षणभंगुरता का दृश्य उनकी आँखों के सामने नाचने लगा। उन्होंने तत्काल सब कछ भाई भरत को सौंप वैराग्य धारण कर लिया।7 उपरोक्त कथानक में घटनाओं का अत्यंत मनोवैज्ञानिक चित्रण है। कौन व्यक्ति किस स्थिति में किस तरह का निर्णय लेगा इसका अनुमान लगाना कितना कठिन है। इस मनःस्थिति का चित्रण इस कथानक से स्पष्ट होता है। बाहुबली ने विजय प्राप्त करने के बाद भी अपनी भावना के रथ को उसी दिशा में मोड़ दिया जिस दिशा में उनके पिता आदि तीर्थकर ऋषभदेव गए थे। जिनसेन आचार्य के अनुसार भगवान् ऋषभदेव के चरणों में ही उन्होंने दीक्षा ग्रहण की।28 फिर दीक्षा ग्रहण कर ] वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया।29 “भरतेश मुझसे
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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