________________
अनेकान्त 58/3-4
___अर्थात एक ही पाषाण खंड से बना यह संसार का सबसे विशाल बिम्ब है जो मिश्र की रेमेसिज की मूर्तियों से भी बड़ा है।
एच. जिमर का मत है :
"It is human in shape and feature, yet as inhuman as an icicle, and thus expresses perfectly the idea of successful withdrawal from the round of life and death, personal, cares, individual destuny, desires, sufferings and events......like a pillar of some superterrestirial unearthly substance......stands superbly motionless."6
अर्थात यह मूर्ति आकृति और नाक-नक्श में मानवीय है और अधर में लटकती हिमशिला की भाँति मानवेत्तर है। जन्म मरण के चक्र, जीवन की नियति, चिन्ताओं, कामनाओं, पीड़ाओं, घटनाओं से पूर्णतया मुक्त-भावों को सपूर्णता के साथ अभिव्यक्त करती है। अपार्थिव और अलौकिक स्तम्भ की तरह अचल और अडिग खड़ी है।
विन्सेट स्मिथ के अनुसार :
"Undoubtedly the most remarkable of Jaina statues and the largest free standing statue in Asia...set on the top of an eminence is visible for miles round."]
अर्थात निस्सन्देह ही यह अति विशिष्ट और असाधारण जैन मूर्ति एशिया की निराधार खड़ी विशालतम प्रतिमा है, जो पर्वत के उच्चतम शिखर पर स्थित चारों ओर मीलों दूर से देखी जा सकती है।
वालहाउस का मत है :
Truly Egyptian in size, and unrivalled throughtout India as detached work....Nude, cut from a single mass of granite, darkened by the monsoons of centuries, the vast statue stands upright....n a posture of somewhat stiff but simple dignity.”8
अर्थात वस्तुतः आकार में मिश्र की मूर्तियों जैसी, समस्त भारत में अद्वितीय एवं अनुपम, निर्लिप्त, नग्न ग्रेनाइट की एक ही चट्टान से