SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-58/1-2 111 अधिकार रहा। रुद्रसिंह, रुद्रदामन, जयदामन, नहपान आदि ये शक छत्रप भी जैन ही थे। इन शकों का उच्छेद अवन्ति से आन्ध्र राजों ने किया और यह आन्ध्र राजे भी अनार्य तथा जैन-धर्मानुयायी ही थे। दूसरी शताब्दी ईसवी में आन्ध्र वंश के अस्त तथा 4थी शताब्दी में गुप्त वंश के उदय के बीच महारथी नामक नाग एवं वकातक सदार प्रबल रहे उन्हीं का आधिपत्य अधिकांश मध्य तथा दक्षिण भारत पर रहा। ये नाग राजे प्रायः सर्व ही जैनधर्मानुयायी थे। उनकी नागभाषा (प्राकृत व अपभ्रंश) जैन साहित्य की ही मुख्य भाषा थी। उक्त नागयुग में जैन विद्वानों ने नागरी लिपि का अविष्कार किया, जैन शिल्पकारों ने जैन मन्दिरों में नागर शैली का प्रचार किया। अच्छ अथवा अश्मक दक्षिण भारत के उत्तरपूर्व का प्रदेश था। इसकी राजधानी पोदनपुर जैनों का एक पवित्र स्थान अति प्राचीनकाल से रहा है। सम्राट खारवेल की मृत्यु के पश्चात् कलिङ्क वंश की ही एक शाखा का यहां राज्य रहा। इसी कारण यह प्रान्त त्रिकलिङ्ग का दक्षिण कलिङ्ग कहलाया। नागयुग में यह प्रसिद्ध फणिमण्डल के अन्तर्गत था और आचार्यप्रवर, सिंहनन्दि, सर्वनन्दि, समन्तभद्र, पूज्यपाद आदि का कार्यक्षेत्र था। वाद को यह प्रान्त पहले पल्लव फिर गगवाड़ी के जैन गणराज्य में सम्मिलित हो गया। वच्छ अर्थात् वत्स देश की राजधानी कौशाम्बी थी। नागों के प्रबल आक्रमणों के कारण पांडवों के वंशज निचक्षु आदि ने इस देश में अपना राज्य स्थापित किया था। किन्तु पड़ौसी व्रात्यों संसर्ग में वत्स देश के कुरुवंशी वैदिक आर्य भी व्रात्संस्कृति में रंगे गये और उन्होंने जैनधर्म अङ्गीकार कर लिया। महावीरकाल में स्वप्नवासवदत्ता की प्रसिद्धि वाला वत्सराज उदयन जैनधर्म का भक्त था। किन्तु उसके एक दो पीढ़ी बाद ही मगध के शिशुनाग सम्राटों ने वत्स को विजय कर अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। कच्छ अर्थात् काठियावाड़ प्रान्त में उस समय वर्तमान गुजरात तथा बम्बई प्रेजीडेन्सी का बहुभाग था। महाभारत काल में मथुरा के यदुवंशी राजा समुद्रविजय ने द्वारका में अपना राज्य स्थापन किया था। उनके पश्चात् उनके भतीजे नारायण कृष्ण राज्य के उत्तराधिकारी हुए। कृष्ण महाराज के ताऊजाद
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy