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________________ अनेकान्त-57/1-2 भारतीय सम्प्रदाय के रूप में जैनों ने संस्कृत की महत्त्वपूर्ण सेवा की है। जैन वाङ्मय में साधुवर्ग का विशेष अवदान रहा है और उनके प्रति समाज की अगाध श्रद्धा होती है, अतः उस वाङ्मय का प्रभाव भी असाधारण पड़ता है। प्रस्तुत आलेख में दिगम्बर जैन परम्परा के एक सारस्वत संत महाकवि आचार्य विद्यासागर जी महाराज की संस्कृत साहित्य सपर्या को बीसवीं शती के संस्कृत साहित्य में अग्रिम पंक्ति में रेखांकित करने का विनम्र प्रयास किया गया है। ईसा की बीसवीं शती को संस्कृत साहित्य का पुनरुत्थान काल कहा जा सकता है। इस शताब्दी में भारत की स्वतंत्रता के पहले और बाद में प्रचुर साहित्य की संरचना हुई है। प्राचीन काल के समान संस्कृत कवियों को राज्याश्रय या राज्यसम्मान न मिलने पर भी उनकी वाग्देवी की आराधना में संलग्नता कम आश्चर्यजनक नहीं है। बीसवीं शताब्दी में विरचित संस्कृत वाङ्मय का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है महाकाव्य श्री छज्जूराम शास्त्री विद्यालंकार श्री स्वामी भगवदाचर्य श्री कविरत्न अखिलानन्द शर्मा श्री मेधाव्रत श्री काशीनाथ शर्मा द्विवेदी पण्डिता क्षमाराव श्री दिलीपदत्त शर्मा श्री द्विजेन्द्रनाथ शास्त्री श्री शिवगोविन्द त्रिपाठी श्री त्र्यम्बक शर्मा भण्डारकर श्री ब्रह्मानन्द शुक्ल श्री बलभद्रप्रसाद शास्त्री श्री महाकवि ज्ञानसागर श्री उमापति द्विवेदी श्री हरिदास सिद्धान्तवागीश श्री नित्यानन्द शास्त्री श्री कालिपद दत्तकाचार्य श्री बदरीनाथ झा सुल्तानचरितम्, परशुरामचरितम् भारतपारिजातम्, रामानन्ददिग्विजयम् । सनातनधर्मदिग्विजयम्, दयानन्ददिग्विजयम् दयानन्ददिग्विजयम् रूक्मिणीहरणम् तुकारामचरितम्, रामदासचरितम्, स्वराज्यविजयम् मुनिचरितामृतम् स्वराज्यविजयम् गांधिगौरवम् विवेकानन्दचरितम्. नेहरुचरितम् नेहरुयशःसौरभम् जयोदयः, वीरोदयः, सुदर्शनोदयः पारिजातहरणम् रुक्मिणीहरणम् पुण्यश्रीचरितम्, क्षमाकल्याणचरितम् सत्यानुभवम् रूक्मिणीपरिणयम्
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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