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अनेकान्त-57/1-2
क्षत्रियधर्म पालन के लिए आवश्यक अस्त्र-शस्त्र शिक्षा एवं वयस्क पुत्रों की भिन्न रुचि के कारण राजा चिन्ताग्रस्त रहते थे।" सत्ता प्राप्ति के लिए राजकुमारों में आपसी कलह, हत्या एवं षड्यन्त्रों के कारण राजा भी सामान्य परिवार में होने वाले धन, सम्पति आदि के बँटवारे के विषय में चिन्तित रहते थे। कौरव-पाण्डवों की कलह के मध्य घिरे धृतराष्ट्र का जीवन इसी प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त था। धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों का विनाश उसके मानसिक उद्वेग का परिचायक था। 18
सन्दर्भ-संकेत 1क. सर्वः प्रार्थितमर्थमधिगम्य सुखीसम्पद्यतेजन्तुः। राज्ञां तु चरितार्थता दुःखान्तरैव। अभिज्ञान. अंक-5, 1ख. मातिश्रमापनयनाय न च श्रमाय। राज्यं स्वहस्तगतदण्डमिनातपत्रम् ।। अभिज्ञान., 5/6, 2. सः कृतकहस्ती। प्रतिज्ञा. अंक-1, 3. मुद्राराक्षस, अंक-2, 4. मृच्छकटिक, 4/26, 5 प्रतिज्ञा. 1/4, 6. मृच्छकटिक, 5/16, 7. प्रतिज्ञा., 1/4, 8. रावण-हन्त! निर्गतो विभीषणः। अभिषेक, अंक-3, 9. राजा-प्रकृत्यमित्रः प्रतिकूलकारी च मे विदर्भः। मालविका., अंक-1, 10. रघुवंश, 1/71-72, 11. रघुवंश, 10/2, 12. अभिज्ञान., 6/25, 13. हा वासव दत्ते। हा अवन्तिराजपुत्रि। स्वप्नवासवदत्त, अंक-1, 14. दूतवाक्य, 1/55, 15. प्रतिज्ञा. 2/6, 1/4, 16. एतेनैव लतापाशेन बद्ध्वा गृहाणैनं ब्राह्मणम्। रलावली, अंक-4, 17. प्रतिज्ञा., 2/13, 18. दूत घटोत्कच, 1/10
-शिक्षक आवास एस. डी. कॉलेज, मुजफ्फरनगर
चिन्तनीया हि विपदामादावेव प्रतिक्रिया।
न कूपखननं युक्तं प्रदीप्तते वन्हिना गृहे ।। अर्थात् - विपदाओं के आने से पहले ही उनका प्रतिकार सोच रखना चाहिये। घर में आग लगने पर उसे बुझाने के लिए कूप खोदना उचित नहीं है। क्योंकि कूप तो खुदेगा नहीं और घर जलकर राख हो जावेगा।