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अनेकान्त-57/3-4
के महापाप से दरिद्री हो गये। उसी नगर में वापस आये तथा मनोरथ सेठ की दूकान पर अपनी पसंद की साड़ी खरीदने गये। पुरानी पसंद के अनुसार साड़ी लेने पर पिता ने होलिका को पहिचान लिया और अपने घर ले गया-दोनों वही रहने लगे
कथा में कवि ने तत्कालीन सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए युवावस्था में विधवा की मनोदशा, बदनामी के डर से दूती की हत्या, पर-स्त्री गमन आदि बुराइयों पर प्रकाश डाला है तथा दुर्गति कारण महापाप बताया है।
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जाडयं धियो हरति, सिञ्चति वाचि सत्यं, मानोन्नतिं दिशति, पापमपाकरोति। चेतः प्रसादयति, दिक्षु तनोति कीर्ति,
सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ? ।। सज्जनों का सङ्ग मनुष्यों के बुद्धि की जड़ता को नष्ट करता है। । वाणी में सत्य को सींचता है। सम्मान को वृद्धि देता है। पाप को। | दूर करता है। चित्त को प्रसन्न कर देता है। दिशाओं में यश को | | फैला देता है। कहिये, क्या नहीं करता?