________________
अनेकान्त-57/3-4
दोहा नावज मोतीराम को, जैतराम सुकहाय। ताकै पुत्र जतीन है, नाव सुणो मन लाय।। 109 ।। पहलो तो स्योलाल है, दूजो कालूराम। तीजो मोहनराम है, जाति साह अभिराम।। 110।।
चौपई जाकै पोता दोय सु सार, पहलो छाजूलाल विचार। दूजो राजूलाल कहाय, गुण जाके वरणे नहिंजाय ।। 111।।
सोरठा
बिचलो कालूराम सुरस लिखवायो भावसु । चढवायो जिनधाम, पढो सुणो सब चावसु ।। 112।।
चौपई
पोसवदि असटमिसुभबार, बार भलो जाणो सुक्रवार। संवत अठारसै सुभ जाणि, ऊपर तीयासीज वखाणण।। 113।।
सोरठा
लिखियो कालूराम, पुस्तक बडा जु भावसु । चढवायो जिनधाम, पढो सुणो भवि चावसु ।। 113।।
दोहा मंगल पंच परम गुरसही, मंगल राज-पिरजा लही। पढे सुणै तिण मंगलकही, सबके मंगल जेतै मही।। 114।।
।। इति होली की कथा संपूरण ।।