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________________ अनेकान्त-57/3-4 जयपुर नगर बसै तिहि माहि, धन करन सोभा कही न जाहि। स्त्री जन सोभै तहां भली, जाणिक चित्रतणी फूतली।। 4।। जिण चैत्याल सोमै अती, श्रावक पूज करै दिन प्रती। करै महोछव मंगलाचार, कामिणि गावै गीत अपार ।। 5 ।। श्रावक लोक बसै धनवंत, पूजा करै जपै अरिहंत। जो वर्णे राजा तिहि भलों, राजनीति सोभै गुण निलौ ।। 6 ।। पटराणी जै प्रिया सुजाणि, गुण लावण्य रूप की खानि। सेठ मनोरथ सोभै भलो, दान पुण्य जाणै गुण निलौ।। 7।। लक्ष्मीमति सेठाणी जाणि, तिहकी सोभा अधिक बरणाणि। बीच में होलिका दहन काम कथा का वर्णन करते हुए होली खेलना मिथ्यात्व कहकर जलती हुई होली देखना भी नरक गति का कारण कहा है। अंतिम 96 से 100 पद्यों में रचनाकार रचना स्थान रचना काल आदि का ऐतिहासिक वर्णन उपलब्ध है सोलासैसाठ शुभ वर्ष, फागुण शुक्ल पूर्ण महा हर्ष ।। 17।। सो है मोजमावाद निवास, पूजै मन की सगली आस। सोभै राइमान को राज, जिहिविधी पूरब लग याज।। 18 ।। सुखी वसै नगर में लोग, दान पुण्य जाणै सहुलोग। इहविधि काल गमै दिनरात, जाणै नही दुःख की जाति ।। 19।। छीतरठोलया विनती करे, हीया में जिणवाणी धरै। पंडित आगै जोडै हाथ, भूलौ हो तो ज्यो नाथ।। 2011 भाव भेद हूं जाणै नही, होली तणी कथा मैं कही। जो सीखै पालै मन लाइ, सो नर स्वर्गतणी गति जाइ।। मोजमाबाद जयपुर राज्य का प्राचीन नगर है जहां बादशाह अकबर के
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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