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अनेकान्त-57/3-4
गुण का विस्तार किया है (गा. 107)। पर्याय दो प्रकार की होती हैं-व्यंजन पर्याय और अर्थ पर्याय। आकारवान प्रदेशत्व गुण की अपेक्षा द्रव्य की जो परिणति होती है उसे व्यंजन पर्याय कहते हैं। अन्य गुणों की अपेक्षा षड्गुणी हानि-वृद्धि रूप परिणति अर्थ पर्याय है। स्वभाव और विभाव पर्याय रूप से यह दोनों दो-दो प्रकार की होती हैं। स्व निमित्तिक स्वभाव और परनिमित्तिक विभाव पर्याय होती है। जीव और पुद्गल की जो परनिमित्त पर्याय है वह विभाव पर्याय कहलाती है। परनिमित्त दूर होने पर स्वभाव पर्याय होगी। द्रव्य पर्याय से अभिन्न है। इस कारण द्रव्यपर्यायात्मक पदार्थ को सामान्य विशेषात्मक कहा जाता है। पञ्चास्तिकायाः - अस्तिकाय पांच हैं। जीवादि छः द्रव्यों को प्रदेशों के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया है-अस्तिकाय और अनस्तिकाय। बह प्रदेशी द्रव्यों को अस्तिकाय कहते है। वे पांच है-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म
और आकाश अस्तित्व में नियत, अस्तित्व से अनन्यभय और अणुमहान (प्रदेश में बड़े) होने से अस्तिकाय हैं। काल द्रव्य एक प्रदेशी होने के कारण अनस्तिकाय है। अस्ति का अर्थ है सत् और काय का अर्थ 'शरीर' होता है। काल को छोड़कर शेष पाँच द्रव्यों के विविध गुणों और पर्यायों के साथ अपनत्व है अतः वे अस्तिकाय हैं (पंचास्तिकाय संग्रह गा. 4-5)। ___ जीव द्रव्य अनंत हैं। पुद्गल द्रव्य अनंतानंत हैं, धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य और आकाश द्रव्य एक-एक है। काल द्रव्य असंख्यात लोक प्रमाण है। इनमें जीव द्रव्य, धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेशी हैं। आकाश द्रव्य अनंत प्रदेशी है, किन्तु लोकाकाश वाला भाग धर्मास्तिकाय के बराबर असंख्यात प्रदेशी है। पुद्गल अणुरूप एक प्रदेशी होकर शक्ति अपेक्षा स्कन्धरूप अनेक प्रदेशी हो जाने के कारण संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशी भी होते हैं।
जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य में स्वभाव (शुद्ध) और विभाव (अशुद्ध) रूप परिणमन की क्रियावती शक्ति है। यह इन दो द्रव्यों के मध्य निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धों का सूचक है। शेष चार द्रव्य निष्क्रिय-स्थिर हैं। उनका परिणमन निरंतर शुद्ध ही होता है। जीव एक बार शुद्ध होने के बाद फिर कभी अशुद्ध