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________________ पदार्थों के यथार्थ ज्ञान से ज्ञान-ध्यान को सार्थक बनावें ___-डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र में मोक्ष मार्ग की प्ररूपणा निम्न सूत्र में कीसम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः (1/1) अर्थ – सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्ष का मार्ग है। श्री भगवत्-पुष्पदन्त-भूतबलि-प्रणीत षट्खण्डागम की वीरसेनाचार्य विरचित धवला टीका-सत्परूपणा-1 की निम्न गाथा में सम्यग्दर्शन एवं पदार्थो के ज्ञान का महत्व दर्शाया है छपांच-णव-विहाणं अत्थाणं जिणवरोव इट्ठाणं। आणाए अहिगमेण व सद्दहणं होइ सम्मत्तं ।। 212।। (धवला पुस्तक-9, पृष्ठ 397 : 1-1-114) अर्थ-जिनेन्द्र देव के द्वारा उपदिष्ट छह द्रव्य पाँच अस्तिकाय, नव पदार्थों का आज्ञा अथवा अधिगम श्रद्धान करने को सम्यक्त्व कहते हैं। यह व्यवहार सम्यग्दर्शन का स्वरूप है जो निश्चय सम्यग्दर्शन का कारण या निमित्त है। उक्त कथनों में मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन की प्रधानता और सम्यग्दर्शन हेतु पदार्थो के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान-अवबोध का महत्व निर्विवाद रूप से स्पष्ट झलकता है। भावविहीन क्रिया की निरर्थकता - आचार्य कुन्दकुन्द देव ने दर्शन पाहुड में
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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