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अनेकान्त-57/3-4
शिव-पार्वती के पुत्र एवं हस्त-मुखी देवता 'गणेश' का जन्म अनेक प्रकार से माना जाता है। कुछ ग्रन्थ उनका जन्म पूर्णरूप से पार्वती से मानते है तो कुछ शिव से जन्मित मानते है। लिंग पुराण के अनुसार देवताओं के ध्यान में विघ्न डालने वाले राक्षसों के नाश हेतु शिव ने विघ्नेश्वर का निर्माण किया। वराह पुराण के अनुसार देवताओं की सहायता हेतु शिव के शरीर से पसीने की बूंदो से विनायक का जन्म होता है।
शिव पुराण में रूद्रसंहिता के अनुसार गणेश का जन्म पार्वती के शरीर के मैल से हुआ था। पद्मपुराण, स्कंदपुराण, मत्स्यपुराण में भी गणेश को पार्वती के मैल से उत्पन्न हुआ बतलाया गया है।
शिव-पार्वती से गणेश का जन्म मानने वालों के मतानुसार एक बार शिव-पार्वती जंगल में घूमते हुये हस्त युगल को संयोगावस्था में देखते हैं एवं स्वयं को उसी रूप में सोचकर एक दूसरे के संयोग का आनन्द लेने लगते है। फलस्वरूप जो बालक जन्म लेता है वह हस्तमुखी होता है।
बौद्ध मतानुसार हस्त-मुखी गणेश का जन्म राजा विक्रमाजीत की रक्षा करने हेतु हुआ था। बौद्ध धर्म के विचार हिन्दू धर्म से भिन्न हैं। नेपाली बौद्ध न तो पार्वती से और न ही शिव से गणेश का जन्म मानते हैं। उनके मतानुसार वे स्वयं संसार में अवतरित हुये एवं सूर्य की किरणों के समान चमके। इसी कारण वे सूर्यविनायक के नाम से पुकारे जाते हैं।
पहाडी चित्रकारों ने अधिकांशतः गणेश को हस्त-मखी एवं उनकी बाल्यावस्था में परिवार के साथ चित्रित किया है। कहीं-कहीं चित्रकारों ने उन्हें उनकी पत्नियों रिद्धी, सिद्धी के साथ भी चित्रित किया है किन्तु अधिकांशतः उनको परिवार के साथ अनेक कार्यों में व्यस्त दर्शाया गया है।
शिव-पार्वती के दूसरे पुत्र कार्तिकेय, स्कंद का जन्म पूर्ण रूप से शिव द्वारा माना जाता है। तारकासुर के अत्याचारों से देवताओं को बचाने हेतु शिव, कार्तिकेय को उत्पन्न करते हैं। इस अद्वितीय बालक की रोशनी से सभी देवतागण श्रद्धायुक्त एवं भय से भयभीत होते हैं एवं इसी कारण इस बालक