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________________ अनेकान्त-57/3-4 गणेश बैठे हैं। अग्रभूमि में नंदी, सिंह, नंदी के ऊपर मोर व पीछे चूहा चित्रित है। सभी के मध्य में अग्नि प्रज्ज्वलित है। गुलेर-कांगड़ा के अन्य चित्र में महेश्वर को परिवार के साथ पहाड़ियों में व्याघ्र-चर्म पर बैठा दिखाया गया है। साहित्यिक एवं पौराणिक वर्णनों में शिव के पश्चात पार्वती का नाम होता है। पार्वती का नाम ‘पर्वत' से लिया गया है। उन्हें अनेक नामों से पुकारा जाता है जो उन्हें शिव की प्राप्ति हेतु कठिन तपस्या करने हेतु दिये गये थे– “उमा", “गौरी” और “अपारा" | पार्वती स्वयं में इतनी शक्तिशाली हैं कि वे सभी ओर से शिव को ढके रहती हैं। भक्तों के लिए वे समस्त संसारी और सर्वातिरिक्त शक्तियों को बढ़ाने वाली है व इसी कारण उन्हें “राजेश्वरी" के नाम से पुकारा जाता है। ___ पर्वताराज की पुत्री होने के कारण उन्हें “गिरिजा” और “हेमवती' के नाम से भी जाना जाता है। गणपति व स्कंद की देखभाल करने के कारण उन्हें “अम्बा" और "अम्बिका" के नाम से पुकारा जाता है। “नारायणी" और "वैष्णवी" भी उनके प्रसिद्ध नाम है। शिव की पत्नी के रूप में वे “विमर्शिनी" हैं। शिव की इच्छाओं की पूर्ति करने हेतु वे “अन्नपूर्णा" हैं। "मीनाक्षी" और “गौरी" के रूप में वे स्वयं को शिव भक्ति में समर्पित कर देती हैं। कालिदास ने “कुमार सम्भवम्" में पार्वती के चरित्र को गंगाजल से भी अधिक पवित्र माना है विकीर्णसप्तर्षिबलिप्रहासिभि स्तथा न गांडैग्ः सलिलैदिवश्च्युतैः। तथा त्वदीयैश्चरितैरनाबिलै महीधरः पावित एष सान्वयः ।। __ (कालिदास, कुमारसम्भवम्-5/37) 'पार्वती के चरित्र में उपस्थित उदात्त एवं उत्कृष्ट गुण पार्वती को साधारण मानव की कोटि से उठाकर देवता की श्रेणी में बिठा देते है।
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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